ज़ुबां-ए-होश को बेबाक कर दे
सितमगर ! तू गरेबां चाक कर दे
करिश्मा यह भी करके देख ले तू
कि मेरी रूह ज़ेरे-ख़ाक कर दे
बग़ावत बढ़ रही है नौजवां में
सज़ा को और इब्रतनाक कर दे
ख़ुशी को ख़ूबतर कर के बता दे
ख़ुदी को और ख़ुशपोशाक कर दे
कलेजा फट पड़ेगा ज़ालिमों का
लहू को तू जो आतशनाक कर दे
सियासत की सियाही यूं न फैले
कि हर इंसान को चालाक कर दे
मेरी आवारगी में वो असर है
कि हर आबो-हवा को पाक कर दे
वुज़ू कर के अनलहक़ पढ़ रहे हैं
चले बस तो हमें नापाक कर दे !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : ज़ुबां-ए-होश : संयमित, विवेकपूर्ण भाषा; बेबाक : भय-मुक्त, शिष्टाचार के बंधन से मुक्त; सितमगर : अत्याचारी ; गरेबां : गला; चाक : चीर (ना); करिश्मा:चमत्कार; रूह : आत्मा; ज़ेरे-ख़ाक :मिट्टी के नीचे (दबाना); बग़ावत: विद्रोह की भावना; नौजवां : युवा वर्ग; इब्रतनाक : भयानक; ख़ूबतर: अधिक श्रेष्ठ; ख़ुदी : आत्म-चेतना; ख़ुशपोशाक: सुंदर वस्त्र-भूषित; ज़ालिमों: अत्याचारियों; लहू : रक्त; आतशनाक : अग्नि-वर्णी, तप्त लौह के समान; सियासत : राजनीति; सियाही : कालिमा; चालाक : चतुर; आवारगी : यायावरी ; असर : प्रभाव; आबो-हवा : पर्यावरण ; वुज़ू : देह-शुद्धि; अनलहक़ : 'अहं ब्रह्मास्मि'; नापाक : अपवित्र ।
सितमगर ! तू गरेबां चाक कर दे
करिश्मा यह भी करके देख ले तू
कि मेरी रूह ज़ेरे-ख़ाक कर दे
बग़ावत बढ़ रही है नौजवां में
सज़ा को और इब्रतनाक कर दे
ख़ुशी को ख़ूबतर कर के बता दे
ख़ुदी को और ख़ुशपोशाक कर दे
कलेजा फट पड़ेगा ज़ालिमों का
लहू को तू जो आतशनाक कर दे
सियासत की सियाही यूं न फैले
कि हर इंसान को चालाक कर दे
मेरी आवारगी में वो असर है
कि हर आबो-हवा को पाक कर दे
वुज़ू कर के अनलहक़ पढ़ रहे हैं
चले बस तो हमें नापाक कर दे !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : ज़ुबां-ए-होश : संयमित, विवेकपूर्ण भाषा; बेबाक : भय-मुक्त, शिष्टाचार के बंधन से मुक्त; सितमगर : अत्याचारी ; गरेबां : गला; चाक : चीर (ना); करिश्मा:चमत्कार; रूह : आत्मा; ज़ेरे-ख़ाक :मिट्टी के नीचे (दबाना); बग़ावत: विद्रोह की भावना; नौजवां : युवा वर्ग; इब्रतनाक : भयानक; ख़ूबतर: अधिक श्रेष्ठ; ख़ुदी : आत्म-चेतना; ख़ुशपोशाक: सुंदर वस्त्र-भूषित; ज़ालिमों: अत्याचारियों; लहू : रक्त; आतशनाक : अग्नि-वर्णी, तप्त लौह के समान; सियासत : राजनीति; सियाही : कालिमा; चालाक : चतुर; आवारगी : यायावरी ; असर : प्रभाव; आबो-हवा : पर्यावरण ; वुज़ू : देह-शुद्धि; अनलहक़ : 'अहं ब्रह्मास्मि'; नापाक : अपवित्र ।