हम जहां पाएमाल होते हैं
दोस्तों पर सवाल होते हैं
हक़परस्ती ज़मीर ख़ुद्दारी
मुफ़लिसी के कमाल होते हैं
दिल उन्हीं का बड़ा मिला हमको
जो बहुत तंगहाल होते हैं
रिंद का सब्र तोड़ने वाले
मौलवी के दलाल होते हैं
शाह जम्हूर को नचाता है
हम महज़ इस्तेमाल होते हैं
आसमाने-अदब पे सैयारे
चंद रौशन ख़याल होते हैं
सर झुकाना जिन्हें नहीं आता
वो ख़ुदी की मिसाल होते हैं !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: पाएमाल: पद-दलित; हक़परस्ती: न्याय-प्रियता; ज़मीर: विवेक; ख़ुद्दारी : स्वाभिमान; मुफ़लिसी : वंचन, निर्धनता; कमाल : चमत्कारिक गुण; तंगहाल : वंचित; रिंद: मदिरा-प्रेमी; मौलवी : इस्लाम के ज्ञाता, ब्राह्मण के समकक्ष; जम्हूर: लोकतंत्र; महज़: केवल; इस्तेमाल : प्रयोग; आसमाने-अदब : साहित्य का आकाश; सैयारे: उपग्रह, धूमकेतु; चंद: कुछ; रौशन ख़याल: उज्ज्वल विचारों वाले; ख़ुदी: स्वाभिमान; मिसाल : उदाहरण ।
दोस्तों पर सवाल होते हैं
हक़परस्ती ज़मीर ख़ुद्दारी
मुफ़लिसी के कमाल होते हैं
दिल उन्हीं का बड़ा मिला हमको
जो बहुत तंगहाल होते हैं
रिंद का सब्र तोड़ने वाले
मौलवी के दलाल होते हैं
शाह जम्हूर को नचाता है
हम महज़ इस्तेमाल होते हैं
आसमाने-अदब पे सैयारे
चंद रौशन ख़याल होते हैं
सर झुकाना जिन्हें नहीं आता
वो ख़ुदी की मिसाल होते हैं !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: पाएमाल: पद-दलित; हक़परस्ती: न्याय-प्रियता; ज़मीर: विवेक; ख़ुद्दारी : स्वाभिमान; मुफ़लिसी : वंचन, निर्धनता; कमाल : चमत्कारिक गुण; तंगहाल : वंचित; रिंद: मदिरा-प्रेमी; मौलवी : इस्लाम के ज्ञाता, ब्राह्मण के समकक्ष; जम्हूर: लोकतंत्र; महज़: केवल; इस्तेमाल : प्रयोग; आसमाने-अदब : साहित्य का आकाश; सैयारे: उपग्रह, धूमकेतु; चंद: कुछ; रौशन ख़याल: उज्ज्वल विचारों वाले; ख़ुदी: स्वाभिमान; मिसाल : उदाहरण ।