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शनिवार, 2 मई 2015

'सलीब तय है'

आदाब, दोस्तों।
जैसा कि आप सबको मालूम है, इस साल फ़रवरी में मेरी ग़ज़लों का मज्मूआ 'सलीब तय है', दख़ल प्रकाशन, नई दिल्ली से शाया हुआ था। यह किताब अब flipkart पर भी मिल सकती है। आपकी सहूलियत के लिए, लिंक है: http://www.flipkart.com/saleeb-tay-hai/p/itme6xwm3wgxejvq?pid=9789384159115&icmpid=reco_pp_same_book_book_3&ppid=9789384159146, इसके अलावा आप सीधे दख़ल प्रकाशन से, भाई श्री अशोक कुमार पाण्डेय को ashokk.34@gmail.com ईमेल भेज कर भी मंगा सकते हैं।

दुश्मनों को सलाम...

अर्श  ने  सर  झुका  दिया  मेरा
ख़ुम्र   पानी   बना    दिया  मेरा

आपकी   आतिशी   निगाहों  ने
पाक  दामन  जला  दिया  मेरा

चांद  ने शबनमी  शुआओं  पर
नाम  लिख  कर  मिटा  दिया  मेरा

रोज़  तोड़ो  हो,   रोज़  जोड़ो  हो
दिल  तमाशा  बना  दिया  मेरा

दुश्मनों  को  सलाम  कर  आई
मौत  ने  घर  भुला  दिया  मेरा

वक़्त  ने  इम्तिहां  लिया  जब  भी
साथ  दिल  ने  निभा  दिया  मेरा

मग़फ़िरत  क्या  हुई,  ज़माने  ने 
अज़्म  ऊंचा  उठा  दिया  मेरा

ख़ुल्द  में  थी  कमी  फ़क़ीरों  की
पीर  ने   घर   बता  दिया  मेरा !

                                                                  (2015)

                                                         -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: अर्श: आकाश, ईश्वर; ख़ुम्र: मदिरा; आतिशी: अग्निमय; पाक  दामन: पवित्र हृदय; शबनमी: ओस-जैसी; शुआओं: किरणों; मग़फ़िरत: मोक्ष; अज़्म: सांसारिक स्थान; ख़ुल्द: स्वर्ग; फ़क़ीरों:निस्पृह व्यक्ति; पीर: आध्यात्मिक संबल, गुरु ।