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रविवार, 4 अगस्त 2013

दोस्त मुद्दआ

दोस्त  को  जब  ग़लत  कहा  जाए
हाथ   सीने  पे    रख    लिया  जाए

जब   हमारी   वफ़ाएं  भी  कम  हों
दोस्त  को    क्यूं  बुरा   कहा  जाए

दोस्ती   तर्क    हो    उसके   पहले
दिल से कुछ मश् वरा लिया  जाए


दोस्त  जब  दुश्मनी  पे  आ  जाएं
आईना     साथ    में     रखा  जाए

दोस्ती    बार  जब  लगे  दिल  को
सिलसिला फिर नया किया  जाए

फ़र्क़    जब   दोस्ती   में  आता  हो
क्यूं  न  खुल  के  कहा  सुना  जाए

भीड़   में    दोस्त   मुद्दआ  जब  हो
सोच  कर   तज़्किरा   किया  जाए

क्या  ये:  लाज़िम  नहीं  हसीनों  को
दोस्त का दिल भी रख  लिया  जाए ?!

                                                     ( 2013 )

                                             -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: वफ़ाएं: निष्ठाएं;  तर्क: टूटना; मश् वरा: परामर्श;  सिलसिला: क्रम, आरंभ;   मुद्दआ: विषय;  तज़्किरा: चर्चा, उल्लेख।