या मुझसे दोस्ती का अरमान छोड़ दे
या आज अपनी आदत-ए-एहसान छोड़ दे
बोए हैं तुख़्म-ए-ग़म तो मिलेगा वही तुझे
उम्मीद की ये: बस्ती-ए-वीरान छोड़ दे
मानी-ए-इश्क़ इस क़दर आसां नहीं होते
खुलने दे ख़ुद-ब-ख़ुद उन्हें इमकान छोड़ दे
ज़ाहिर हैं हम पे हुस्न की सारी हक़ीक़तें
नादां वो: हम नहीं के: जो ईमान छोड़ दें
कश्ती भी जानती है किनारा क़रीब है
नादान अब तो ख़ौफ़-ए-तूफ़ान छोड़ दे
आवाज़ दे रहा है पेशकार अर्श से
अब ऐश-ओ-इशरत के सामान छोड़ दे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तुख़्म-ए-ग़म: दुःख के बीज; मानी-ए-इश्क़: प्रेम के अर्थ; इमकान: अनुमान; ज़ाहिर: प्रकट;
ख़ौफ़-ए-तूफ़ान: तूफ़ान का भय; पेशकार: न्यायकर्त्ता के समक्ष प्रस्तुत होने के लिए पुकारने
वाला; अर्श: आकाश; ऐश-ओ-इशरत: भोग-विलास।
या आज अपनी आदत-ए-एहसान छोड़ दे
बोए हैं तुख़्म-ए-ग़म तो मिलेगा वही तुझे
उम्मीद की ये: बस्ती-ए-वीरान छोड़ दे
मानी-ए-इश्क़ इस क़दर आसां नहीं होते
खुलने दे ख़ुद-ब-ख़ुद उन्हें इमकान छोड़ दे
ज़ाहिर हैं हम पे हुस्न की सारी हक़ीक़तें
नादां वो: हम नहीं के: जो ईमान छोड़ दें
कश्ती भी जानती है किनारा क़रीब है
नादान अब तो ख़ौफ़-ए-तूफ़ान छोड़ दे
आवाज़ दे रहा है पेशकार अर्श से
अब ऐश-ओ-इशरत के सामान छोड़ दे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तुख़्म-ए-ग़म: दुःख के बीज; मानी-ए-इश्क़: प्रेम के अर्थ; इमकान: अनुमान; ज़ाहिर: प्रकट;
ख़ौफ़-ए-तूफ़ान: तूफ़ान का भय; पेशकार: न्यायकर्त्ता के समक्ष प्रस्तुत होने के लिए पुकारने
वाला; अर्श: आकाश; ऐश-ओ-इशरत: भोग-विलास।