शिद्दते-दर्द को बढ़ाना है
आशिक़ी तो महज़ बहाना है
सामना कीजिए हक़ीक़त का
वक़्त को फ़ैसला सुनाना है
ज़िक्र मत छेड़िए शराफ़त का
हर कहीं झूठ है फ़साना है
रिंद तैयार है इबादत को
शैख़ को आइना दिखाना है
मांगना छोड़ दें ख़ुदा से भी
गर ख़ुदी का रसूख़ पाना है
ख़ुल्द का ख़्वाब बेचते हैं जो
अब उन्हें राहे-रास्त लाना है
एक मक़सूद एक ही मंज़िल
बेकसों से वफ़ा निभाना है
मुस्तक़िल रोज़गार है अपना
शाह का मक़बरा बनाना है
राह अब इंक़िलाब की तय है
आख़िरी दांव आज़माना है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : शिद्दते-दर्द : पीड़ा की तीव्रता ; महज़ : मात्र ; हक़ीक़त : यथार्थ, वास्तविकता ; ज़िक्र : उल्लेख ; शराफ़त : संभ्रांत व्यवहार ; फ़साना : मिथ्या कथा ; रिंद : मद्यप ; इबादत : पूजा-पाठ, प्रार्थना ; शैख़ : धर्मभीरु ; गर: यदि; ख़ुदी : स्वाभिमान ; रसूख़ : दृढ़ता ; ख़ुल्द : स्वर्ग ; राहे -रास्त : सन्मार्ग ; मक़सूद : अभिप्रेत, अभीष्ट ; बेकसों : असहायों ; वफ़ा : निष्ठां ; मुस्तक़िल रोज़गार : स्थायी आजीविका ; इंक़िलाब : क्रांति।
आशिक़ी तो महज़ बहाना है
सामना कीजिए हक़ीक़त का
वक़्त को फ़ैसला सुनाना है
ज़िक्र मत छेड़िए शराफ़त का
हर कहीं झूठ है फ़साना है
रिंद तैयार है इबादत को
शैख़ को आइना दिखाना है
मांगना छोड़ दें ख़ुदा से भी
गर ख़ुदी का रसूख़ पाना है
ख़ुल्द का ख़्वाब बेचते हैं जो
अब उन्हें राहे-रास्त लाना है
एक मक़सूद एक ही मंज़िल
बेकसों से वफ़ा निभाना है
मुस्तक़िल रोज़गार है अपना
शाह का मक़बरा बनाना है
राह अब इंक़िलाब की तय है
आख़िरी दांव आज़माना है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : शिद्दते-दर्द : पीड़ा की तीव्रता ; महज़ : मात्र ; हक़ीक़त : यथार्थ, वास्तविकता ; ज़िक्र : उल्लेख ; शराफ़त : संभ्रांत व्यवहार ; फ़साना : मिथ्या कथा ; रिंद : मद्यप ; इबादत : पूजा-पाठ, प्रार्थना ; शैख़ : धर्मभीरु ; गर: यदि; ख़ुदी : स्वाभिमान ; रसूख़ : दृढ़ता ; ख़ुल्द : स्वर्ग ; राहे -रास्त : सन्मार्ग ; मक़सूद : अभिप्रेत, अभीष्ट ; बेकसों : असहायों ; वफ़ा : निष्ठां ; मुस्तक़िल रोज़गार : स्थायी आजीविका ; इंक़िलाब : क्रांति।