वो: बहाना बना के मिलते हैं
हम जहां को बता के मिलते हैं
साज़े-दिल छेड़-छेड़ जाते हैं
ख़्वाब में जब वो: आ के मिलते हैं
बेवफ़ाई, फ़रेब, ख़ुदग़र्ज़ी
क्या सिले ये: वफ़ा के मिलते हैं
हरकतों पर नज़र रखें उनकी
जो बहुत मुस्कुरा के मिलते हैं
आप हमसे हिजाब मत रखिए
यूं भी हम सर झुका के मिलते हैं
अह् ले-दिल जब ख़ुदी पे आते हैं
लाख ख़तरे उठा के मिलते हैं
ऐ फ़रिश्तों ! उन्हें सलाम कहो
नक़्श जिनसे ख़ुदा के मिलते हैं !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: साज़े-दिल: हृदय रूपी वाद्य, बेवफ़ाई: छल; फ़रेब: कपट; ख़ुदग़र्ज़ी: स्वार्थ; सिले: प्रतिदान; वफ़ा: आस्था;
हिजाब: पर्दा, आवरण; अह् ले-दिल: हृदय में आस्था रखने वाले; ख़ुदी: अपनी अस्मिता; नक़्श: मुख-चिह्न।
हम जहां को बता के मिलते हैं
साज़े-दिल छेड़-छेड़ जाते हैं
ख़्वाब में जब वो: आ के मिलते हैं
बेवफ़ाई, फ़रेब, ख़ुदग़र्ज़ी
क्या सिले ये: वफ़ा के मिलते हैं
हरकतों पर नज़र रखें उनकी
जो बहुत मुस्कुरा के मिलते हैं
आप हमसे हिजाब मत रखिए
यूं भी हम सर झुका के मिलते हैं
अह् ले-दिल जब ख़ुदी पे आते हैं
लाख ख़तरे उठा के मिलते हैं
ऐ फ़रिश्तों ! उन्हें सलाम कहो
नक़्श जिनसे ख़ुदा के मिलते हैं !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: साज़े-दिल: हृदय रूपी वाद्य, बेवफ़ाई: छल; फ़रेब: कपट; ख़ुदग़र्ज़ी: स्वार्थ; सिले: प्रतिदान; वफ़ा: आस्था;
हिजाब: पर्दा, आवरण; अह् ले-दिल: हृदय में आस्था रखने वाले; ख़ुदी: अपनी अस्मिता; नक़्श: मुख-चिह्न।