उसका ख़्याल यूं तो बहुत पारसा न था
फिर भी कभी नज़र से वो मेरी गिरा न था
मासूम सी निगाह गिरी बर्क़ की तरह
दिल को मिला वो ज़ख़्म कि सोचा-सुना न था
ज़रयाब क्या हुए कि निगाहें बदल गईं
मुफ़लिस रहे तो कोई उन्हें पूछता न था
जिस शख़्स को जम्हूर ने सर पर बिठा लिया
इंसानियत से उसका कोई वास्ता न था
क़ातिल किसी फ़रेबो-वहम के शिकार थे
मक़तूल के ख़िलाफ़ कोई मा'मला न था
ले आई मौत आज हमें जिस मक़ाम पर
था आस्मां ज़रूर वहां पर ख़ुदा न था
बेताब लौट आए मदीने में घूम के
जिसके लिए गए थे उसी का पता न था !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: पारसा:पवित्र; मासूम: अबोध; बर्क़ : तड़ित, आकाशीय विद्युत; ज़रयाब: अचानक समृद्धि पाने वाला; मुफ़लिस : निर्धन; शख़्स: व्यक्ति; जम्हूर: लोकतंत्र, लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली, वास्ता : संबंध, लेना-देना; क़ातिल: हत्यारा/रे; फ़रेबो-वहम: छल/ षड्यंत्र और भ्रम; मक़तूल: हत् व्यक्ति, जिसका वध किया गया हो; मक़ाम: स्थल, स्थान; बेताब:व्यग्र, व्याकुल ।
फिर भी कभी नज़र से वो मेरी गिरा न था
मासूम सी निगाह गिरी बर्क़ की तरह
दिल को मिला वो ज़ख़्म कि सोचा-सुना न था
ज़रयाब क्या हुए कि निगाहें बदल गईं
मुफ़लिस रहे तो कोई उन्हें पूछता न था
जिस शख़्स को जम्हूर ने सर पर बिठा लिया
इंसानियत से उसका कोई वास्ता न था
क़ातिल किसी फ़रेबो-वहम के शिकार थे
मक़तूल के ख़िलाफ़ कोई मा'मला न था
ले आई मौत आज हमें जिस मक़ाम पर
था आस्मां ज़रूर वहां पर ख़ुदा न था
बेताब लौट आए मदीने में घूम के
जिसके लिए गए थे उसी का पता न था !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: पारसा:पवित्र; मासूम: अबोध; बर्क़ : तड़ित, आकाशीय विद्युत; ज़रयाब: अचानक समृद्धि पाने वाला; मुफ़लिस : निर्धन; शख़्स: व्यक्ति; जम्हूर: लोकतंत्र, लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली, वास्ता : संबंध, लेना-देना; क़ातिल: हत्यारा/रे; फ़रेबो-वहम: छल/ षड्यंत्र और भ्रम; मक़तूल: हत् व्यक्ति, जिसका वध किया गया हो; मक़ाम: स्थल, स्थान; बेताब:व्यग्र, व्याकुल ।