दोस्तों के दिलों में बुराई न दे
आस्मां दुश्मनों की दुहाई न दे
चाहिए इश्क़ में सब्रे-जज़्बात भी
चोट दिल पर लगे तो दिखाई न दे
नेक तहज़ीब की रौशनी छोड़ कर
तालिबे-इल्म को बे-हयाई न दे
रोज़ दहक़ान करते रहें ख़ुदकुशी
शाह को आह फिर भी सुनाई न दे
राहे-हक़ में मुबारक हमें मुफ़लिसी
बार हो रूह पर वो कमाई न दे
क़र्ज़ का रिज़्क़ हमको गवारा नहीं
मौत दे दे मगर जगहंसाई न दे
बेईमां पर लुटा कर सभी नेमतें
ऐ ख़ुदा ! तू हमें अब सफ़ाई न दे !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आस्मां: आकाश, भाग्य-विधाता; दुहाई: संदर्भ; सब्रे-जज़्बात: भावनाओं का धैर्य; नेक तहज़ीब: भली सभ्यता; तालिबे-इल्म: विद्यार्थियों; बे-हयाई: निर्लज्जता; दहक़ान: कृषक; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; राहे-हक़: न्याय का मार्ग; मुबारक: शुभ; मुफ़लिसी: निर्धनता; बार: बोझ; रिज़्क़: दैनिक भोजन; गवारा: स्वीकार; नेमतें: कृपाएं ।
आस्मां दुश्मनों की दुहाई न दे
चाहिए इश्क़ में सब्रे-जज़्बात भी
चोट दिल पर लगे तो दिखाई न दे
नेक तहज़ीब की रौशनी छोड़ कर
तालिबे-इल्म को बे-हयाई न दे
रोज़ दहक़ान करते रहें ख़ुदकुशी
शाह को आह फिर भी सुनाई न दे
राहे-हक़ में मुबारक हमें मुफ़लिसी
बार हो रूह पर वो कमाई न दे
क़र्ज़ का रिज़्क़ हमको गवारा नहीं
मौत दे दे मगर जगहंसाई न दे
बेईमां पर लुटा कर सभी नेमतें
ऐ ख़ुदा ! तू हमें अब सफ़ाई न दे !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आस्मां: आकाश, भाग्य-विधाता; दुहाई: संदर्भ; सब्रे-जज़्बात: भावनाओं का धैर्य; नेक तहज़ीब: भली सभ्यता; तालिबे-इल्म: विद्यार्थियों; बे-हयाई: निर्लज्जता; दहक़ान: कृषक; ख़ुदकुशी: आत्म-हत्या; राहे-हक़: न्याय का मार्ग; मुबारक: शुभ; मुफ़लिसी: निर्धनता; बार: बोझ; रिज़्क़: दैनिक भोजन; गवारा: स्वीकार; नेमतें: कृपाएं ।