श'मे-उम्मीद कभी दिल में जलाओ तो सही
स्याहिए-ग़म से शबे-नूर में आओ तो सही
कर चुके उम्र इक क़ुर्बान ज़माने के लिए
अब बचे वक़्त को ख़ुद पे भी लगाओ तो सही
बे-रहम भी हो सितमगर भी जफ़ा-पेशा भी
हम ख़ुदा तुम को बनाएंगे तुम आओ तो सही
कब तलक ग़ैब में रह के दुआ-सलाम करें
रू-ब-रू हों के न हों ख़्वाब सजाओ तो सही
डूबना तय है तो क्यूं साथ न डूबें हम-तुम
एक गुंज़ाइश है तुम हाथ बढ़ाओ तो सही
दरिया-ए-वक़्त का रुख़ तुम भी बदल सकते हो
हौसला रख के क़दम हमसे मिलाओ तो सही !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: श'मे-उम्मीद: आशा-दीप; स्याहिए-ग़म: दुःख की कालिमा; शबे-नूर: प्रकाशित रात्रि, पूर्णिमा; क़ुर्बान: बलि, न्यौछावर;
बे-रहम: निर्दय, सितमगर: पीड़ा देने वाला; जफ़ा-पेशा: छल करने का व्यवसाय करने वाला;ग़ैब: अदृश्य-लोक; रू-ब-रू: आमने-सामने; गुंज़ाइश: संभावना; दरिया-ए-वक़्त: समय की नदी; रुख़: दिशा।
स्याहिए-ग़म से शबे-नूर में आओ तो सही
कर चुके उम्र इक क़ुर्बान ज़माने के लिए
अब बचे वक़्त को ख़ुद पे भी लगाओ तो सही
बे-रहम भी हो सितमगर भी जफ़ा-पेशा भी
हम ख़ुदा तुम को बनाएंगे तुम आओ तो सही
कब तलक ग़ैब में रह के दुआ-सलाम करें
रू-ब-रू हों के न हों ख़्वाब सजाओ तो सही
डूबना तय है तो क्यूं साथ न डूबें हम-तुम
एक गुंज़ाइश है तुम हाथ बढ़ाओ तो सही
दरिया-ए-वक़्त का रुख़ तुम भी बदल सकते हो
हौसला रख के क़दम हमसे मिलाओ तो सही !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: श'मे-उम्मीद: आशा-दीप; स्याहिए-ग़म: दुःख की कालिमा; शबे-नूर: प्रकाशित रात्रि, पूर्णिमा; क़ुर्बान: बलि, न्यौछावर;
बे-रहम: निर्दय, सितमगर: पीड़ा देने वाला; जफ़ा-पेशा: छल करने का व्यवसाय करने वाला;ग़ैब: अदृश्य-लोक; रू-ब-रू: आमने-सामने; गुंज़ाइश: संभावना; दरिया-ए-वक़्त: समय की नदी; रुख़: दिशा।