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शनिवार, 5 अप्रैल 2014

अच्छी ख़बर ...!

लोग  अच्छी  ख़बर  से  डरते  हैं
क़िस्मतों  के  क़हर  से  डरते हैं

दुश्मनों  से  नहीं  हमें  पर्दा :
दोस्तों  की  नज़र  से  डरते हैं

आप  छू  दें  तो  सांप  मर  जाए
आप  किसके  ज़हर  से  डरते  हैं

एक-दो  तो  ज़रूर   हैवां  हैं 
आप  सारे  शहर  से  डरते  हैं

नाम  आतिश-फ़िशां  बताते  हैं
और  दाग़े-शरर  से  डरते  हैं

लोग   तो  बद्दुआ  से  डरते  हैं
हम  दुआ-ए-असर  से  डरते  हैं

नूर  के  ख़्वाब  देखने  वाले
दिल  ही  दिल  में  सहर  से  डरते  हैं !
 
                                                               (2014) 

                                                      -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: क़हर: प्रकोप;  हैवां; हैवान, पशु-स्वभाव वाले; आतिश-फ़िशां: ज्वालामुखी; दाग़े-शरर: चिंगारी का दाग़; 
बद्दुआ: श्राप; दुआ-ए-असर: प्रभावी शुभकामना; सहर: उष:काल ।