मुद्द'आ यूं मिटा तमाशों में
दब गई आह ढोल-ताशों में
सोज़े-तकरीर हुस्न खो बैठा
तल्ख़ तन्क़ीदो-इफ़्तिराशों में
शक्ले-इंसां नज़र नहीं आती
मसख़रों से भरी क़िमाशों में
रहनुमा आए हैं दवा ले कर
फूंकने जान सर्द लाशों में
हैं नुमाया फ़रेब सीरत के
शाह के रेशमी क़ुमाशों में
गंद में जिस्म सन गया सारा
साफ़ किरदार की तलाशों में
खेलिए क्या ग़रीब के दिल से
.खूं छलक आएगा ख़राशों में !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुद्द'आ: विषय; सोज़े-तकरीर: भाषण का माधुर्य; हुस्न: सौंदर्य; तल्ख़: तीक्ष्ण; तन्क़ीदो-इफ़्तिराशों: टिप्पणियों एवं निंदाओं; शक्ले-इंसां: मनुष्य का रूप; मसख़रों: भांडों; क़िमाशों: ताश की गड्डियों; रहनुमा: मार्ग दिखाने वाले, नेता गण; सर्द लाशों: ठंडे शवों; नुमाया: प्रकट; फ़रेब: छद्म; सीरत: चरित्र, स्वभाव; क़ुमाशों: वस्त्र-विन्यास, रूप-सज्जा; गंद: मलिनता; जिस्म: देह; किरदार: चरित्र, व्यक्तित्व; तलाशों: अनुसंधानों; .खूं : रक्त, ख़राशों: खरोंचों ।
दब गई आह ढोल-ताशों में
सोज़े-तकरीर हुस्न खो बैठा
तल्ख़ तन्क़ीदो-इफ़्तिराशों में
शक्ले-इंसां नज़र नहीं आती
मसख़रों से भरी क़िमाशों में
रहनुमा आए हैं दवा ले कर
फूंकने जान सर्द लाशों में
हैं नुमाया फ़रेब सीरत के
शाह के रेशमी क़ुमाशों में
गंद में जिस्म सन गया सारा
साफ़ किरदार की तलाशों में
खेलिए क्या ग़रीब के दिल से
.खूं छलक आएगा ख़राशों में !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुद्द'आ: विषय; सोज़े-तकरीर: भाषण का माधुर्य; हुस्न: सौंदर्य; तल्ख़: तीक्ष्ण; तन्क़ीदो-इफ़्तिराशों: टिप्पणियों एवं निंदाओं; शक्ले-इंसां: मनुष्य का रूप; मसख़रों: भांडों; क़िमाशों: ताश की गड्डियों; रहनुमा: मार्ग दिखाने वाले, नेता गण; सर्द लाशों: ठंडे शवों; नुमाया: प्रकट; फ़रेब: छद्म; सीरत: चरित्र, स्वभाव; क़ुमाशों: वस्त्र-विन्यास, रूप-सज्जा; गंद: मलिनता; जिस्म: देह; किरदार: चरित्र, व्यक्तित्व; तलाशों: अनुसंधानों; .खूं : रक्त, ख़राशों: खरोंचों ।