अब पस-ओ-पेश का सवाल नहीं
तुम से बेहतर कोई ख़याल नहीं
वो: बुला लें तो अपनी क़िस्मत है
हम पहुँच जाएँ ये: मजाल नहीं
जब ये: दिल ही नहीं रहा अपना
तो किसी और का मलाल नहीं
फिर कई रोज़ से अकेले हैं
फिर कई दिन से जी बहाल नहीं
नूर तेरा है मेरी सूरत पे
अपनी सीरत का ये: कमाल नहीं।
( 2003 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: पस-ओ-पेश : दुविधा, किन्तु-परन्तु; मजाल: साहस;
मलाल: खेद; सूरत: बाह्य-रूप; सीरत: आतंरिक व्यक्तित्व।
तुम से बेहतर कोई ख़याल नहीं
वो: बुला लें तो अपनी क़िस्मत है
हम पहुँच जाएँ ये: मजाल नहीं
जब ये: दिल ही नहीं रहा अपना
तो किसी और का मलाल नहीं
फिर कई रोज़ से अकेले हैं
फिर कई दिन से जी बहाल नहीं
नूर तेरा है मेरी सूरत पे
अपनी सीरत का ये: कमाल नहीं।
( 2003 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: पस-ओ-पेश : दुविधा, किन्तु-परन्तु; मजाल: साहस;
मलाल: खेद; सूरत: बाह्य-रूप; सीरत: आतंरिक व्यक्तित्व।