तेरे क़रीब रहे या के: तुझसे दूर रहे
हमारे दरमियान फ़ासले ज़रूर रहे
मैं बेगुनाह नहीं प' दुआ का हक़ तो है
जहां भी जाए तू रश्क़-ए-कोह-ए-नूर रहे
मेरा ज़मीर सलामत रहे सज़ा के दिन
ज़ुबां प' ज़ब्त रहे, चश्म बा-शऊर रहे
तेरे निज़ाम में मासूम चढ़ गए फांसी
तेरे करम से मुजरिमान बेक़सूर रहे
मैं मुतमईं हूं, मेरे हक़ में फ़ैसला होगा
मेरी नमाज़ रहे या तेरा ग़ुरूर रहे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
*शब्दार्थ: दरमियान: बीच में; फ़ासले: अंतराल, दूरी; रश्क़-ए-कोह-ए-नूर: कोह-ए-नूर ( हीरा ) की ईर्ष्या का पात्र;
ज़मीर: विवेक; ज़ब्त: नियंत्रण; निज़ाम: न्याय-व्यवस्था; मासूम: निरपराध; करम: कृपा;
मुजरिमान: अपराधी( बहु.); मुतमईं:आश्वस्त;हक़:पक्ष; ग़ुरूर: अहंकार।
हमारे दरमियान फ़ासले ज़रूर रहे
मैं बेगुनाह नहीं प' दुआ का हक़ तो है
जहां भी जाए तू रश्क़-ए-कोह-ए-नूर रहे
मेरा ज़मीर सलामत रहे सज़ा के दिन
ज़ुबां प' ज़ब्त रहे, चश्म बा-शऊर रहे
तेरे निज़ाम में मासूम चढ़ गए फांसी
तेरे करम से मुजरिमान बेक़सूर रहे
मैं मुतमईं हूं, मेरे हक़ में फ़ैसला होगा
मेरी नमाज़ रहे या तेरा ग़ुरूर रहे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
*शब्दार्थ: दरमियान: बीच में; फ़ासले: अंतराल, दूरी; रश्क़-ए-कोह-ए-नूर: कोह-ए-नूर ( हीरा ) की ईर्ष्या का पात्र;
ज़मीर: विवेक; ज़ब्त: नियंत्रण; निज़ाम: न्याय-व्यवस्था; मासूम: निरपराध; करम: कृपा;
मुजरिमान: अपराधी( बहु.); मुतमईं:आश्वस्त;हक़:पक्ष; ग़ुरूर: अहंकार।