हर हुनर हम पे आज़माते हैं
जाने किस-किस से सीख आते हैं
आप जब बेरुख़ी दिखाते हैं
रूह की मुश्किलें बढ़ाते हैं
दूर रह कर निगाह से अक्सर
आप नज़दीक़ हुए जाते हैं
आप अपनी क़सम न दोहराएं
हम सभी फ़ैसले निभाते हैं
मौत आ जाए उन ख़यालों को
जो उन्हें बेवफ़ा बनाते हैं
दोस्तों में कमाल का दम है
रात-भर फ़लसफ़ा सुनाते हैं
वो: तरक़्क़ी की बात करते हैं
और फिर बस्तियां जलाते हैं
आईना देखते नहीं ख़ुद वो:
ग़ैर पर उंगलियां उठाते हैं
बज़्म में सर झुकाए रहते हैं
अर्श से बिजलियां गिराते हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हुनर: कौशल; बेरुख़ी: उपेक्षा; फ़लसफ़ा: दर्शन; तरक़्क़ी: प्रगति; बज़्म: सभा; अर्श: आकाश ।
जाने किस-किस से सीख आते हैं
आप जब बेरुख़ी दिखाते हैं
रूह की मुश्किलें बढ़ाते हैं
दूर रह कर निगाह से अक्सर
आप नज़दीक़ हुए जाते हैं
आप अपनी क़सम न दोहराएं
हम सभी फ़ैसले निभाते हैं
मौत आ जाए उन ख़यालों को
जो उन्हें बेवफ़ा बनाते हैं
दोस्तों में कमाल का दम है
रात-भर फ़लसफ़ा सुनाते हैं
वो: तरक़्क़ी की बात करते हैं
और फिर बस्तियां जलाते हैं
आईना देखते नहीं ख़ुद वो:
ग़ैर पर उंगलियां उठाते हैं
बज़्म में सर झुकाए रहते हैं
अर्श से बिजलियां गिराते हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हुनर: कौशल; बेरुख़ी: उपेक्षा; फ़लसफ़ा: दर्शन; तरक़्क़ी: प्रगति; बज़्म: सभा; अर्श: आकाश ।