दिल में मलाल रख न ज़ेहन में सवाल रख
अल्फ़ाज़ में उमीद कहन में कमाल रख
तन्हा न सह सकेगा शबे-तार की घुटन
अपने क़रीब कोई तो पुरसाने-हाल रख
फ़ानी हैं तख़्तो-ताजो-हुकूमत-ओ-सल्तनत
जब तक उरूज पर है नज़र में जवाल रख
आज़ादिए-सुख़न से परेशां है बादशा:
तुझको ये लाज़िमी है कि सर को संभाल रख
सरकार चाहती है झुकाना अवाम को
हर हाल में ज़मीरो-ख़ुदी का ख़्याल रख
शाने-फ़क़ीर शाहे-सिकंदर से कम नहीं
कासा उठा लिया है तो जाहो-जलाल रख
इतना न सर झुका कि नज़र ही न उठ सके
अल्लाह भी ग़लत है तो हक़ से सवाल रख !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मलाल : खेद, अवसाद, ज़ेहन: मस्तिष्क, अल्फ़ाज़: शब्दावली; उम्मीद: आशा; कहन: कथन-शैली;
तन्हा: अकेले; शबे-तार: अमावस्या, अंधकार पूर्ण रात्रि, पुरसाने-हाल: सुख-दुःख पूछने वाला, शुभचिंतक; फ़ानी: नश्वर; तख़्तो-ताज: राजासन एवं मुकुट; हुकूमत: शासन, सल्तनत: साम्राज्य; मंज़ूर: स्वीकार; आज़ादिए-सुख़न: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता; लाज़िमी: स्वाभाविक; अवाम: नागरिक-समुदाय; ज़मीर: विवेक; ख़ुदी: स्वाभिमान; शाने-फ़क़ीर: भिक्षुक की भव्यता; कासा: भिक्षा-पात्र; जाहो-जलाल: तेज-प्रताप; हक़ से: साधिकार ।
अल्फ़ाज़ में उमीद कहन में कमाल रख
तन्हा न सह सकेगा शबे-तार की घुटन
अपने क़रीब कोई तो पुरसाने-हाल रख
फ़ानी हैं तख़्तो-ताजो-हुकूमत-ओ-सल्तनत
जब तक उरूज पर है नज़र में जवाल रख
आज़ादिए-सुख़न से परेशां है बादशा:
तुझको ये लाज़िमी है कि सर को संभाल रख
सरकार चाहती है झुकाना अवाम को
हर हाल में ज़मीरो-ख़ुदी का ख़्याल रख
शाने-फ़क़ीर शाहे-सिकंदर से कम नहीं
कासा उठा लिया है तो जाहो-जलाल रख
इतना न सर झुका कि नज़र ही न उठ सके
अल्लाह भी ग़लत है तो हक़ से सवाल रख !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मलाल : खेद, अवसाद, ज़ेहन: मस्तिष्क, अल्फ़ाज़: शब्दावली; उम्मीद: आशा; कहन: कथन-शैली;
तन्हा: अकेले; शबे-तार: अमावस्या, अंधकार पूर्ण रात्रि, पुरसाने-हाल: सुख-दुःख पूछने वाला, शुभचिंतक; फ़ानी: नश्वर; तख़्तो-ताज: राजासन एवं मुकुट; हुकूमत: शासन, सल्तनत: साम्राज्य; मंज़ूर: स्वीकार; आज़ादिए-सुख़न: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता; लाज़िमी: स्वाभाविक; अवाम: नागरिक-समुदाय; ज़मीर: विवेक; ख़ुदी: स्वाभिमान; शाने-फ़क़ीर: भिक्षुक की भव्यता; कासा: भिक्षा-पात्र; जाहो-जलाल: तेज-प्रताप; हक़ से: साधिकार ।