हमारे अश्क जिस दिन आपकी आँखों में आएंगे
जहाँ में हों न हों हम आपके ख़्वाबों में आएंगे
अभी है इब्तिदा-ए-इश्क़ दिल के दाग़ क्या देखें
न जाने और कितने हादसे राहों में आएंगे
अभी हम कनख़ियों से देखते हैं उनको हसरत से
कभी वो: दिन भी आएगा के: हम नज़रों में आएंगे
तेरे रुख़सार की लौ में झुलस कर तोड़ते हैं दम
ये: परवाने जहाँ देखो वहीं क़दमों में आएंगे
ये: दिल के ज़ख्म हैं साहब छिपाएं भी तो किस तरह
जो अश्कों में न उतरें तो मेरे नग़मों में आएंगे
तेरे आशिक़ तो तारीख़ में अपनी जगह तय है
जो पीरों में न होंगे तो तेरे बन्दों में आएंगे।
(2003)
-सुरेश स्वप्निल