मरहले रास्ता नहीं होते
मंज़िलों का पता नहीं होते
मालो-ज़र से जिन्हें मुहब्बत है
वो: हबीबे-ख़ुदा नहीं होते
मुस्कुराना अगर नहीं आता
तुम मेरा मर्तबा नहीं होते
काश ! इस्लाह आप सुनते तो
तंज़ का मुद्द'आ नहीं होते
आप सज्दा न कीजिए उनको
आदमी देवता नहीं होते
अश्क ज़ाया न कीजिए अपने
ये: ग़मों की दवा नहीं होते
वो: जो ख़्वाबीदा उर्फ़ रखते हैं
ख़्वाब उनसे जुदा नहीं होते !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मरहले: पड़ाव; मालो-ज़र: धन-दौलत; हबीबे-ख़ुदा: ख़ुदा के प्रिय, पीर; मर्तबा: लक्ष्य, प्रतिष्ठा; इस्लाह: सुझाव; तंज़: व्यंग; मुद्द'आ: आस्पद, विषय; सज्दा: सिर झुका कर प्रणाम करना; ज़ाया: व्यर्थ; ख़्वाबीदा: स्वप्निल; उर्फ़: उपनाम !
मंज़िलों का पता नहीं होते
मालो-ज़र से जिन्हें मुहब्बत है
वो: हबीबे-ख़ुदा नहीं होते
मुस्कुराना अगर नहीं आता
तुम मेरा मर्तबा नहीं होते
काश ! इस्लाह आप सुनते तो
तंज़ का मुद्द'आ नहीं होते
आप सज्दा न कीजिए उनको
आदमी देवता नहीं होते
अश्क ज़ाया न कीजिए अपने
ये: ग़मों की दवा नहीं होते
वो: जो ख़्वाबीदा उर्फ़ रखते हैं
ख़्वाब उनसे जुदा नहीं होते !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मरहले: पड़ाव; मालो-ज़र: धन-दौलत; हबीबे-ख़ुदा: ख़ुदा के प्रिय, पीर; मर्तबा: लक्ष्य, प्रतिष्ठा; इस्लाह: सुझाव; तंज़: व्यंग; मुद्द'आ: आस्पद, विषय; सज्दा: सिर झुका कर प्रणाम करना; ज़ाया: व्यर्थ; ख़्वाबीदा: स्वप्निल; उर्फ़: उपनाम !