तलाशे-मकां में जहां लुट गया
ज़मीं के लिए आस्मां लुट गया
अदा सादगी शोख़ियां पैरहन
न जाने दिवाना कहां लुट गया
पसोपेश में रह गईं आंधियां
सफ़ीना इसी दरमियां लुट गया
मिला शाह हमको ख़ुदादाद ख़ां
कि सदक़े में हर नौजवां लुट गया
रिआया तरसती रही रिज़्क़ को
सियासत में हिन्दोस्तां लुट गया
कहीं तीरगी को ख़ुदा मिल गया
कहीं रौशनी का मकां लुट गया
रहे-मग़फ़िरत पर चले थे मगर
मेरे पीर का कारवां लुट गया !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तलाशे-मकां : घर की खोज; जहां: संसार, गृहस्थी; ज़मीं: पृथ्वी, इहलोक; आस्मां : आकाश, परलोक; अदा: भाव-भंगिमा;
सादगी: सहजता, ऋजुता; शोख़ियां: चंचलता; पैरहन: वस्त्र-विन्यास; पसोपेश: दुविधा; सफ़ीना: नौका, जलयान; दरमियां: बीच, मध्य; ख़ुदादाद: ईश्वर दत्त, ईश्वर की देन; सदक़े: बलिहारी; रिआया: नागरिक गण; रिज़्क़: भोजन; सियासत: राजनीति; तीरगी: अंधकार; रौशनी: प्रकाश; रहे-मग़फ़िरत: मोक्ष का मार्ग; पीर: मार्गदर्शक, मनुष्य और ईश्वर का मध्यस्थ, आध्यात्मिक गुरु; कारवां: यात्री-दल।
ज़मीं के लिए आस्मां लुट गया
अदा सादगी शोख़ियां पैरहन
न जाने दिवाना कहां लुट गया
पसोपेश में रह गईं आंधियां
सफ़ीना इसी दरमियां लुट गया
मिला शाह हमको ख़ुदादाद ख़ां
कि सदक़े में हर नौजवां लुट गया
रिआया तरसती रही रिज़्क़ को
सियासत में हिन्दोस्तां लुट गया
कहीं तीरगी को ख़ुदा मिल गया
कहीं रौशनी का मकां लुट गया
रहे-मग़फ़िरत पर चले थे मगर
मेरे पीर का कारवां लुट गया !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तलाशे-मकां : घर की खोज; जहां: संसार, गृहस्थी; ज़मीं: पृथ्वी, इहलोक; आस्मां : आकाश, परलोक; अदा: भाव-भंगिमा;
सादगी: सहजता, ऋजुता; शोख़ियां: चंचलता; पैरहन: वस्त्र-विन्यास; पसोपेश: दुविधा; सफ़ीना: नौका, जलयान; दरमियां: बीच, मध्य; ख़ुदादाद: ईश्वर दत्त, ईश्वर की देन; सदक़े: बलिहारी; रिआया: नागरिक गण; रिज़्क़: भोजन; सियासत: राजनीति; तीरगी: अंधकार; रौशनी: प्रकाश; रहे-मग़फ़िरत: मोक्ष का मार्ग; पीर: मार्गदर्शक, मनुष्य और ईश्वर का मध्यस्थ, आध्यात्मिक गुरु; कारवां: यात्री-दल।