शब-ए-तारीक जब पीछा करेगी
तुम्हें मेरी ग़ज़ल ढूँढा करेगी
कटी है रात भर करवट बदलते
मदद बाद-ए-सबा भी क्या करेगी
सर-ओ-पा इक फ़साना बन गया हूँ
मेरी दीवानगी क्या-क्या करेगी
लुटाते हैं वफ़ा दरियादिली से
तमन्ना फिर हमें रुस्वा: करेगी
नज़र फेरो अगर तो याद रखना
हमारी रूह तक शिकवा करेगी
निगाहों में वफ़ा के रंग भर लो
ये: दुनिया आपको पूजा करेगी
मिटा दे या बना दे फ़िक्र क्यूँ हो
मोहब्बत जो करे , अच्छा करेगी।
(2012)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: -शब-ए-तारीक :अँधेरी रात, अमावास; बाद-ए-सबा : सुबह की समीर ,सर-ओ-पा : सर से पांव तक,
फ़साना : झूठी कहानी ; रुस्वा : लज्जित ; शिकवा : शिकायत