ग़रीबों का दिल 'गर समंदर न हो
तो दुनिया कभी हद से बाहर न हो
करें क़त्ल हमको बुराई नहीं
अगर आपका नाम ज़ाहिर न हो
रहे कौन ऐसी जगह पर जहां
कहीं आश्नाई का मंज़र न हो
महज़ इत्तिफ़ाक़न चली है हवा
ये: सेहरा किसी और के सर न हो
न देखा करें आप अब आइना
अगर पास में कोई पत्थर न हो
मिलें रू-ब-रू जब कभी आप-हम
तो दिल पर सियाही की चादर न हो
बुलंदी सलामत रहे आपकी
मगर क़द ख़ुदा के बराबर न हो !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: समंदर: समुद्र; हद: सीमा; ज़ाहिर: प्रकट; आश्नाई: मित्रता; मंज़र: दृश्य; महज़: मात्र; इत्तिफ़ाक़न: संयोगवश; सेहरा: श्रेय; रू-ब-रू: मुखामुख, आमने-सामने; सियाही: कालिमा, मलिनता, बैर-भाव; बुलंदी: उच्चता; सलामत: सुरक्षित, यथावत; क़द: ऊंचाई।
तो दुनिया कभी हद से बाहर न हो
करें क़त्ल हमको बुराई नहीं
अगर आपका नाम ज़ाहिर न हो
रहे कौन ऐसी जगह पर जहां
कहीं आश्नाई का मंज़र न हो
महज़ इत्तिफ़ाक़न चली है हवा
ये: सेहरा किसी और के सर न हो
न देखा करें आप अब आइना
अगर पास में कोई पत्थर न हो
मिलें रू-ब-रू जब कभी आप-हम
तो दिल पर सियाही की चादर न हो
बुलंदी सलामत रहे आपकी
मगर क़द ख़ुदा के बराबर न हो !
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: समंदर: समुद्र; हद: सीमा; ज़ाहिर: प्रकट; आश्नाई: मित्रता; मंज़र: दृश्य; महज़: मात्र; इत्तिफ़ाक़न: संयोगवश; सेहरा: श्रेय; रू-ब-रू: मुखामुख, आमने-सामने; सियाही: कालिमा, मलिनता, बैर-भाव; बुलंदी: उच्चता; सलामत: सुरक्षित, यथावत; क़द: ऊंचाई।