निगाहे-यार से ख़ुश हैं
नज़र के वार से ख़ुश हैं
शहर के लोग दीवाने
नए बाज़ार से ख़ुश हैं
मकीं बेज़ार हैं ख़ुद से
दरो-दीवार से ख़ुश हैं
वो अपनी फ़त्ह से ज़्यादा
हमारी हार से ख़ुश हैं
फ़क़ीरी के दिनों में हम
ख़्याले-यार से ख़ुश हैं
मियां की सादगी देखो
कि बस दस्तार से ख़ुश हैं
ज़माने-भर के बे- ईमां
तेरी सरकार से ख़ुश हैं !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मकीं: मकान में रहने वाले; बेज़ार: व्यथित; दरो-दीवार: द्वार एवं भित्ति; फ़त्ह: विजय; फ़क़ीरी: सन्यास, भिक्षुक-वृत्ति;
ख़्याले-यार: प्रिय/ईश्वर का ध्यान; सादगी: निस्पृहता; दस्तार: पगड़ी/बड़ा पद; बे- ईमां: भ्रष्टाचारी।
नज़र के वार से ख़ुश हैं
शहर के लोग दीवाने
नए बाज़ार से ख़ुश हैं
मकीं बेज़ार हैं ख़ुद से
दरो-दीवार से ख़ुश हैं
वो अपनी फ़त्ह से ज़्यादा
हमारी हार से ख़ुश हैं
फ़क़ीरी के दिनों में हम
ख़्याले-यार से ख़ुश हैं
मियां की सादगी देखो
कि बस दस्तार से ख़ुश हैं
ज़माने-भर के बे- ईमां
तेरी सरकार से ख़ुश हैं !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मकीं: मकान में रहने वाले; बेज़ार: व्यथित; दरो-दीवार: द्वार एवं भित्ति; फ़त्ह: विजय; फ़क़ीरी: सन्यास, भिक्षुक-वृत्ति;
ख़्याले-यार: प्रिय/ईश्वर का ध्यान; सादगी: निस्पृहता; दस्तार: पगड़ी/बड़ा पद; बे- ईमां: भ्रष्टाचारी।