हमको निबाह करना मुश्किल नहीं रहा
यह शह्र ही हमारे क़ाबिल नहीं रहा
आते हुए मेह्रबां कुछ देर कर गए
जिस पर हमें गुमां था वो दिल नहीं रहा
यूं याद आएंगे हम अपने रक़ीब को
'वो अम्न का सिपाही बुज़दिल नहीं रहा'
दिल की ख़रोंच पर जो मरहम लगा सके
कोई तबीब इतना कामिल नहीं रहा
आख़िर वज़ीर है वो मुख़्तार शाह का
उसने कहा तो क़ातिल, क़ातिल नहीं रहा
इसको नसीब कहिए या सब्र की सज़ा
हमको करम ख़ुदा का हासिल नहीं रहा
हम क़त्ल हो गए वो बैठा है क़स्र में
पुर्सिश वो क्या करे जो बिस्मिल नहीं रहा !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मेह्रबां: कृपालु; गुमां: गर्व; रक़ीब: प्रतिद्वंदी, शत्रु; अम्न: शांति; बुज़दिल: भीरु; तबीब: उपचारक, हकीम; कामिल: संपूर्ण, सुयोग्य; वज़ीर:मंत्री; मुख़्तार: प्रवक्ता; क़ातिल:हत्यारा; नसीब: प्रारब्ध; सब्र: धैर्य; करम: कृपा; हासिल: उपलब्ध; क़स्र: महल; पुर्सिश:सांत्वना, संवेदना; बिस्मिल: घायल।
यह शह्र ही हमारे क़ाबिल नहीं रहा
आते हुए मेह्रबां कुछ देर कर गए
जिस पर हमें गुमां था वो दिल नहीं रहा
यूं याद आएंगे हम अपने रक़ीब को
'वो अम्न का सिपाही बुज़दिल नहीं रहा'
दिल की ख़रोंच पर जो मरहम लगा सके
कोई तबीब इतना कामिल नहीं रहा
आख़िर वज़ीर है वो मुख़्तार शाह का
उसने कहा तो क़ातिल, क़ातिल नहीं रहा
इसको नसीब कहिए या सब्र की सज़ा
हमको करम ख़ुदा का हासिल नहीं रहा
हम क़त्ल हो गए वो बैठा है क़स्र में
पुर्सिश वो क्या करे जो बिस्मिल नहीं रहा !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मेह्रबां: कृपालु; गुमां: गर्व; रक़ीब: प्रतिद्वंदी, शत्रु; अम्न: शांति; बुज़दिल: भीरु; तबीब: उपचारक, हकीम; कामिल: संपूर्ण, सुयोग्य; वज़ीर:मंत्री; मुख़्तार: प्रवक्ता; क़ातिल:हत्यारा; नसीब: प्रारब्ध; सब्र: धैर्य; करम: कृपा; हासिल: उपलब्ध; क़स्र: महल; पुर्सिश:सांत्वना, संवेदना; बिस्मिल: घायल।
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