भले हो शिर्क अक़ीदत बुतां-ए-फ़ानी में
मगर फ़रेब नहीं है मेरी कहानी में
हमीं पे आज ये: इल्ज़ाम-ए-बुतपरस्ती क्यूँ
गुनाह सब ने किया है यही जवानी में
क़रीब आ ही गए हैं तो पर्दा दारी क्यूँ
तुम्हें तो उज्र नहीं यूँ भी दिल सितानी में
भटक रहे हैं कहाँ बे-वजह रक़ीबों में
रहें सुकूं से मिरे दिल की निगहबानी में
हर एक शै है मुक़द्दस तेरी ख़ुदाई में
तो शर्म क्यूँ हो हमें लज़्ज़त-ए-'उरियानी में
तिलिस्म-ए-हुस्न-ए-बह्र तिफ़्ल तोड़ लेते हैं
अज़्मत-ए-मीर कहाँ नज़्म-ए-नातवानी में
किया करे हैं हम पे शक़ जो बेवफ़ाई का
के: हमसे हाथ न धो लें वो: बदगुमानी में।
(20 जनवरी, 2013)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : शिर्क: ईश्वर-द्रोह , इल्ज़ाम-ए-बुतपरस्ती : मूर्ति-पूजा ; दिल सितानी :दिल में आ रहना;शै:- रचना , मुक़द्दस : पवित्र , लज़्ज़त-ए-उरियानी :दिगम्बरत्व ,सर्वस्व त्याग का आनंद, तिलिस्म-ए-हुस्न-ए-बह्र : छंद के सौंदर्य का रहस्य , तिफ़्ल : छोटे-छोटे बच्चे ;अज़्मत-ए-मीर: महान शायर मीर तक़ी 'मीर'-जैसी महानता, नज़्म-ए-नातवानी: निर्बलता की नज़्म , बदगुमानी: संदेहशीलता
मगर फ़रेब नहीं है मेरी कहानी में
हमीं पे आज ये: इल्ज़ाम-ए-बुतपरस्ती क्यूँ
गुनाह सब ने किया है यही जवानी में
क़रीब आ ही गए हैं तो पर्दा दारी क्यूँ
तुम्हें तो उज्र नहीं यूँ भी दिल सितानी में
भटक रहे हैं कहाँ बे-वजह रक़ीबों में
रहें सुकूं से मिरे दिल की निगहबानी में
हर एक शै है मुक़द्दस तेरी ख़ुदाई में
तो शर्म क्यूँ हो हमें लज़्ज़त-ए-'उरियानी में
तिलिस्म-ए-हुस्न-ए-बह्र तिफ़्ल तोड़ लेते हैं
अज़्मत-ए-मीर कहाँ नज़्म-ए-नातवानी में
किया करे हैं हम पे शक़ जो बेवफ़ाई का
के: हमसे हाथ न धो लें वो: बदगुमानी में।
(20 जनवरी, 2013)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : शिर्क: ईश्वर-द्रोह , इल्ज़ाम-ए-बुतपरस्ती : मूर्ति-पूजा ; दिल सितानी :दिल में आ रहना;शै:- रचना , मुक़द्दस : पवित्र , लज़्ज़त-ए-उरियानी :दिगम्बरत्व ,सर्वस्व त्याग का आनंद, तिलिस्म-ए-हुस्न-ए-बह्र : छंद के सौंदर्य का रहस्य , तिफ़्ल : छोटे-छोटे बच्चे ;अज़्मत-ए-मीर: महान शायर मीर तक़ी 'मीर'-जैसी महानता, नज़्म-ए-नातवानी: निर्बलता की नज़्म , बदगुमानी: संदेहशीलता