बीमारे-आरज़ू से कितने सवाल कीजे
पुर्सिश को आए हैं तो कुछ देखभाल कीजे
चुपचाप दिल उठा कर चल तो दिए मियांजी
इस बेमिसाल शय का कुछ इस्तेमाल कीजे
मायूस रहते-रहते मग़रिब हुई हमारी
ख़ुशियां ग़रीब दिल की अब तो बहाल कीजे
फ़ाक़ों में मर रही हैं दहक़ान की उमीदें
अय शाहे-वक़्त आख़िर कुछ तो कमाल कीजे
भर जाए सल्तनत से दिल आपका कभी जब
मेरी तरह सड़क पर आ कर बवाल कीजे
आमाल के मुताबिक़ जो मिल गया बहुत है
किस बात पर ख़ुदा का जीना मुहाल कीजे
फिर आएंगे पलट कर हम क़ैदे-आस्मां से
इस हिज्रे-चंद रोज़ा का क्या मलाल कीजे !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बीमारे-आरज़ू : इच्छाओं के रोगी; पुरसिश : हाल-चाल पूछना; शय: वस्तु ; इस्तेमाल : प्रयोग; फ़ाकों : उपवासों; दहक़ान : कृषक (बहु.); उमीदें : आशाएं; शाहे-वक़्त : वर्त्तमान शासक; कमाल : चमत्कार; आमाल : कर्मों; मुताबिक़ : अनुसार; मुहाल : दुरूह, कठिन; क़ैदे-आस्मां : ईश्वर/स्वर्ग की कारा; हिज्रे-चंद रोज़ा : चार दिन के वियोग; मलाल : खेद।
पुर्सिश को आए हैं तो कुछ देखभाल कीजे
चुपचाप दिल उठा कर चल तो दिए मियांजी
इस बेमिसाल शय का कुछ इस्तेमाल कीजे
मायूस रहते-रहते मग़रिब हुई हमारी
ख़ुशियां ग़रीब दिल की अब तो बहाल कीजे
फ़ाक़ों में मर रही हैं दहक़ान की उमीदें
अय शाहे-वक़्त आख़िर कुछ तो कमाल कीजे
भर जाए सल्तनत से दिल आपका कभी जब
मेरी तरह सड़क पर आ कर बवाल कीजे
आमाल के मुताबिक़ जो मिल गया बहुत है
किस बात पर ख़ुदा का जीना मुहाल कीजे
फिर आएंगे पलट कर हम क़ैदे-आस्मां से
इस हिज्रे-चंद रोज़ा का क्या मलाल कीजे !
(2018)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बीमारे-आरज़ू : इच्छाओं के रोगी; पुरसिश : हाल-चाल पूछना; शय: वस्तु ; इस्तेमाल : प्रयोग; फ़ाकों : उपवासों; दहक़ान : कृषक (बहु.); उमीदें : आशाएं; शाहे-वक़्त : वर्त्तमान शासक; कमाल : चमत्कार; आमाल : कर्मों; मुताबिक़ : अनुसार; मुहाल : दुरूह, कठिन; क़ैदे-आस्मां : ईश्वर/स्वर्ग की कारा; हिज्रे-चंद रोज़ा : चार दिन के वियोग; मलाल : खेद।