चाहे हमारे मर्ग़ की कोई ख़बर न हो
मुमकिन नहीं कि आपके दिल पर असर न हो
हम क्या हुए कि खोल के रख दें न दिल अभी
वो: यार क्या हुआ कि कभी मोतबर न हो
कहते हैं जिसे अश्क, रग़-ए-दिल का है लहू
टपके ज़रूर आंख से, प' दर-ब-दर न हो !
पीने से क़ब्ल कौन नमाज़ें पढ़ा करे
शायद हमारे जाम में बिल्कुल ज़हर न हो
मांगी तो हैं दुआएं तेरे वास्ते मगर
तेरी तरह ख़ुदा भी कहीं बेख़बर न हो !
( 201 4 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मर्ग़: निधन; मुमकिन: संभव; मोतबर: विश्वसनीय; अश्क: आंसू; रग़-ए-दिल: हृदय-तंतु;
लहू: रक्त; दर-ब-दर: आश्रय-विहीन; क़ब्ल:पूर्व; जाम: मदिरा-पात्र ।
मुमकिन नहीं कि आपके दिल पर असर न हो
हम क्या हुए कि खोल के रख दें न दिल अभी
वो: यार क्या हुआ कि कभी मोतबर न हो
कहते हैं जिसे अश्क, रग़-ए-दिल का है लहू
टपके ज़रूर आंख से, प' दर-ब-दर न हो !
पीने से क़ब्ल कौन नमाज़ें पढ़ा करे
शायद हमारे जाम में बिल्कुल ज़हर न हो
मांगी तो हैं दुआएं तेरे वास्ते मगर
तेरी तरह ख़ुदा भी कहीं बेख़बर न हो !
( 201 4 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मर्ग़: निधन; मुमकिन: संभव; मोतबर: विश्वसनीय; अश्क: आंसू; रग़-ए-दिल: हृदय-तंतु;
लहू: रक्त; दर-ब-दर: आश्रय-विहीन; क़ब्ल:पूर्व; जाम: मदिरा-पात्र ।