जियाले आतिशे-दिल से गुज़र कर भी नहीं समझे
इरादों की बग़ावत से उबर कर भी नहीं समझे !
हवाएं दोस्त तो हरगिज़ किसी की भी नहीं होतीं
रहे अनजान जो पत्ते बिखर कर भी नहीं समझे
किनारे बैठ कर कुछ लोग बस, गिनते रहे मौजें
दिवाने तो समंदर में उतर कर भी नहीं समझे
कहा क्या चांद ने बादे-सबा की लोरियां सुन कर
न शायर ही कभी समझे, मुसव्विर भी नहीं समझे
हमारे नाम की हर शाम क्यूं वो शम्'अ रखते हैं
हमारे मक़बरे के संगे-मरमर भी नहीं समझे
जिन्हें मानी समझने थे, समझ कर भी नहीं समझे
हज़ारों साल सीने में ठहर कर भी नहीं समझे !
अक़ीदत तो सभी में है, मिलेंगे कब-कहां-किसको
हमारी राह के सच्चे मुसाफ़िर भी नहीं समझे !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जियाले: दुस्साहसी; आतिशे-दिल: हृदय की अग्नि; इरादों: संकल्पों; बग़ावत: विद्रोह; हरगिज़: कदापि; मौजें: लहरें;
दिवाने: उन्मादी व्यक्ति; बादे-सबा: प्रातः समीर; मुसव्विर: चित्रकार; शम्'अ: दीपिका, मोमबत्ती; मक़बरे: समाधि, क़ब्र पर बना स्मारक; मानी: आशय; सीने: हृदय; अक़ीदत: आस्था, श्रद्धा; मुसाफ़िर: यात्री।
इरादों की बग़ावत से उबर कर भी नहीं समझे !
हवाएं दोस्त तो हरगिज़ किसी की भी नहीं होतीं
रहे अनजान जो पत्ते बिखर कर भी नहीं समझे
किनारे बैठ कर कुछ लोग बस, गिनते रहे मौजें
दिवाने तो समंदर में उतर कर भी नहीं समझे
कहा क्या चांद ने बादे-सबा की लोरियां सुन कर
न शायर ही कभी समझे, मुसव्विर भी नहीं समझे
हमारे नाम की हर शाम क्यूं वो शम्'अ रखते हैं
हमारे मक़बरे के संगे-मरमर भी नहीं समझे
जिन्हें मानी समझने थे, समझ कर भी नहीं समझे
हज़ारों साल सीने में ठहर कर भी नहीं समझे !
अक़ीदत तो सभी में है, मिलेंगे कब-कहां-किसको
हमारी राह के सच्चे मुसाफ़िर भी नहीं समझे !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जियाले: दुस्साहसी; आतिशे-दिल: हृदय की अग्नि; इरादों: संकल्पों; बग़ावत: विद्रोह; हरगिज़: कदापि; मौजें: लहरें;
दिवाने: उन्मादी व्यक्ति; बादे-सबा: प्रातः समीर; मुसव्विर: चित्रकार; शम्'अ: दीपिका, मोमबत्ती; मक़बरे: समाधि, क़ब्र पर बना स्मारक; मानी: आशय; सीने: हृदय; अक़ीदत: आस्था, श्रद्धा; मुसाफ़िर: यात्री।