शहीदाने-वफ़ा के ख़ून से तहरीर लिक्खी है
ख़ुदा ने कर्बला की क्या ग़ज़ब तक़दीर लिक्खी है
ख़ुदा ने कर्बला की क्या ग़ज़ब तक़दीर लिक्खी है
अज़ल के बाद भी ज़िंदा रहेगा ख़ानदां उनका
कि जिनके नाम प तारीख़ ने शमशीर लिक्खी है
कटे बाज़ू हज़ारों साल दुनिया को दिखाएंगे
रग़-ए-अब्बास में मौला, तिरी तासीर लिक्खी है
ज़मीं-ए-कर्बला में फिर यज़ीदी सोच क़ाबिज़ है
जहां पर दास्ताने-क़त्ल-ए-शब्बीर लिक्खी है
ये दरबारे-हुसैनी है, यहां फ़िरक़े नहीं चलते
यहां हर क़ल्ब में बस अम्न की तस्वीर लिक्खी है ...
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
कि जिनके नाम प तारीख़ ने शमशीर लिक्खी है
कटे बाज़ू हज़ारों साल दुनिया को दिखाएंगे
रग़-ए-अब्बास में मौला, तिरी तासीर लिक्खी है
ज़मीं-ए-कर्बला में फिर यज़ीदी सोच क़ाबिज़ है
जहां पर दास्ताने-क़त्ल-ए-शब्बीर लिक्खी है
ये दरबारे-हुसैनी है, यहां फ़िरक़े नहीं चलते
यहां हर क़ल्ब में बस अम्न की तस्वीर लिक्खी है ...
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: