दिल कहां सीने में जैसे दुश्मने-जां हो गया
आईने में देख कर सच को पशेमां हो गया
हार कर भी तो सबक़ सीखा नहीं कमज़र्फ़ ने
ठोकरों की मार से मुंहज़ोर नादां हो गया
'ये न खाओ' 'वो न पहनो' 'यूं चलो' 'ऐसे जियो'
क्या तरक़्क़ी का यही बस एक पैमां हो गया
दाल-रोटी के लिए भी चोरियां होने लगीं
मुफ़लिसी से किस क़द्र कमज़ोर ईमां हो गया
देख लें जूता सुंघा कर होश आ जाए कहीं
शाह की मदहोशियों से घर परेशां हो गया
ख़ुदनुमाई का तमाशा ख़त्म होता ही नहीं
ताजदारों की अदा से मुल्क हैरां हो गया
जुर्म है फ़िरक़ापरस्ती जानते हैं सब मगर
इस गली से रहज़नों का काम आसां हो गया !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दुश्मने-जां: प्राणों का शत्रु; पशेमां: लज्जित; सबक़: पाठ, शिक्षा; कमज़र्फ़: उथला, अ-गंभीर; मुंहज़ोर: वाचाल, बकवासी; नादां:अल्प-बुद्धि; तरक़्क़ी: प्रगति; पैमां: मापदंड; मुफ़लिसी:वंचन, निर्धनता; किस क़द्र:किस सीमा तक; ईमां:निष्ठा; मदहोशियों: उन्मत्तताओं; परेशां: विचलित, अस्त-व्यस्त; ख़ुदनुमाई:आत्म-प्रदर्शन; ताजदारों: शासकों; अदा:हाव-भाव, शैली; मुल्क:देश; हैरां: चकित; जुर्म: अपराध; फ़िरक़ापरस्ती: सांप्रदायिकता; रहज़नों: मार्ग में लूटने वाले; आसां:सरल।
आईने में देख कर सच को पशेमां हो गया
हार कर भी तो सबक़ सीखा नहीं कमज़र्फ़ ने
ठोकरों की मार से मुंहज़ोर नादां हो गया
'ये न खाओ' 'वो न पहनो' 'यूं चलो' 'ऐसे जियो'
क्या तरक़्क़ी का यही बस एक पैमां हो गया
दाल-रोटी के लिए भी चोरियां होने लगीं
मुफ़लिसी से किस क़द्र कमज़ोर ईमां हो गया
देख लें जूता सुंघा कर होश आ जाए कहीं
शाह की मदहोशियों से घर परेशां हो गया
ख़ुदनुमाई का तमाशा ख़त्म होता ही नहीं
ताजदारों की अदा से मुल्क हैरां हो गया
जुर्म है फ़िरक़ापरस्ती जानते हैं सब मगर
इस गली से रहज़नों का काम आसां हो गया !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दुश्मने-जां: प्राणों का शत्रु; पशेमां: लज्जित; सबक़: पाठ, शिक्षा; कमज़र्फ़: उथला, अ-गंभीर; मुंहज़ोर: वाचाल, बकवासी; नादां:अल्प-बुद्धि; तरक़्क़ी: प्रगति; पैमां: मापदंड; मुफ़लिसी:वंचन, निर्धनता; किस क़द्र:किस सीमा तक; ईमां:निष्ठा; मदहोशियों: उन्मत्तताओं; परेशां: विचलित, अस्त-व्यस्त; ख़ुदनुमाई:आत्म-प्रदर्शन; ताजदारों: शासकों; अदा:हाव-भाव, शैली; मुल्क:देश; हैरां: चकित; जुर्म: अपराध; फ़िरक़ापरस्ती: सांप्रदायिकता; रहज़नों: मार्ग में लूटने वाले; आसां:सरल।