हुस्न-ए-जानां के मानी वो: समझा नहीं
सीधी-सच्ची कहानी वो: समझा नहीं
हम इशारों - इशारों में सब कह गए
इश्क़ की तर्जुमानी वो: समझा नहीं
रोज़ बिकता रहा माल-ओ-ज़र के लिए
राज़-ए-दुनिया-ए-फ़ानी वो: समझा नहीं
बे- वजह नाख़ुदा से लड़ाई नज़र
हाय ! लफ़्ज़-ए-रवानी वो: समझा नहीं
अक़्ल-ए-सय्याद पे क्यूँ न हैरां हों हम
रूह-ए-शाहीं की बानी वो: समझा नहीं।
(2010)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हुस्न-ए-जानां : प्रिय का सौंदर्य , तर्जुमानी : अनुवाद , माल-ओ-ज़र : धनसम्पत्ति , राज़-ए-दुनिया-ए-फ़ानी : नश्वर संसार का रहस्य , लफ़्ज़-ए-रवानी: प्रवाह-शब्द , सय्याद : शिकारी
सीधी-सच्ची कहानी वो: समझा नहीं
हम इशारों - इशारों में सब कह गए
इश्क़ की तर्जुमानी वो: समझा नहीं
रोज़ बिकता रहा माल-ओ-ज़र के लिए
राज़-ए-दुनिया-ए-फ़ानी वो: समझा नहीं
बे- वजह नाख़ुदा से लड़ाई नज़र
हाय ! लफ़्ज़-ए-रवानी वो: समझा नहीं
अक़्ल-ए-सय्याद पे क्यूँ न हैरां हों हम
रूह-ए-शाहीं की बानी वो: समझा नहीं।
(2010)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हुस्न-ए-जानां : प्रिय का सौंदर्य , तर्जुमानी : अनुवाद , माल-ओ-ज़र : धनसम्पत्ति , राज़-ए-दुनिया-ए-फ़ानी : नश्वर संसार का रहस्य , लफ़्ज़-ए-रवानी: प्रवाह-शब्द , सय्याद : शिकारी