लब लरज़ते ही क़यामत हो गई
जान की दुश्मन सियासत हो गई
चंद जाहिल शायरी में आ गए
बज़्म से ग़ायब नफ़ासत हो गई
बदनिज़ामी देखिए इस दौर की
शाह की घर में फ़जीहत हो गई
इत्तिफ़ाक़न मिल गए पर शाह को
रोज़ की परवाज़ आदत हो गई
शाह को मंहगाई पर उस्ताद से
बे-हयाई की नसीहत हो गई
आईने के रू-ब-रू जब भी हुए
ताजदारों को हरारत हो गई
ख़्वाब में आ तो रहे थे वो मगर
राह में नासाज़ तबियत हो गई
आज भी दिल रात भर धड़का किया
आज फिर नाकाम हिकमत हो गई
शाह को अब शुक्रिया कह डालिए
सांस लेने की इजाज़त हो गई !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: लब : ओष्ठ-अधर; लरज़ते: कांपते; क़यामत: प्रलय; सियासत: राजनीति; चंद: चार,कुछ; जाहिल: अशिक्षित, जड़-बुद्धि; बज़्म: गोष्ठी,सभा; नफ़ासत: शालीनता, भद्रता; बदनिज़ामी: कुप्रबंध, कु-व्यवस्था; दौर: काल-खंड; फ़जीहत: दुर्दशा; इत्तिफ़ाक़न : संयोगवश; पर: पंख; परवाज़: उड़ान; बे-हयाई: निर्लज्जता; नसीहत: शिक्षा, दिशा-निर्देश; आईने :दर्पण; रू-ब-रू : मुखामुख, समक्ष; ताजदारों: मुकुट-धारियों, सत्ताधारियों; हरारत :ज्वर; नासाज़ :अ-स्वस्थ; नाकाम: असफल, व्यर्थ; हिकमत: वैद्यक; इजाज़त:अनुमति।
जान की दुश्मन सियासत हो गई
चंद जाहिल शायरी में आ गए
बज़्म से ग़ायब नफ़ासत हो गई
बदनिज़ामी देखिए इस दौर की
शाह की घर में फ़जीहत हो गई
इत्तिफ़ाक़न मिल गए पर शाह को
रोज़ की परवाज़ आदत हो गई
शाह को मंहगाई पर उस्ताद से
बे-हयाई की नसीहत हो गई
आईने के रू-ब-रू जब भी हुए
ताजदारों को हरारत हो गई
ख़्वाब में आ तो रहे थे वो मगर
राह में नासाज़ तबियत हो गई
आज भी दिल रात भर धड़का किया
आज फिर नाकाम हिकमत हो गई
शाह को अब शुक्रिया कह डालिए
सांस लेने की इजाज़त हो गई !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: लब : ओष्ठ-अधर; लरज़ते: कांपते; क़यामत: प्रलय; सियासत: राजनीति; चंद: चार,कुछ; जाहिल: अशिक्षित, जड़-बुद्धि; बज़्म: गोष्ठी,सभा; नफ़ासत: शालीनता, भद्रता; बदनिज़ामी: कुप्रबंध, कु-व्यवस्था; दौर: काल-खंड; फ़जीहत: दुर्दशा; इत्तिफ़ाक़न : संयोगवश; पर: पंख; परवाज़: उड़ान; बे-हयाई: निर्लज्जता; नसीहत: शिक्षा, दिशा-निर्देश; आईने :दर्पण; रू-ब-रू : मुखामुख, समक्ष; ताजदारों: मुकुट-धारियों, सत्ताधारियों; हरारत :ज्वर; नासाज़ :अ-स्वस्थ; नाकाम: असफल, व्यर्थ; हिकमत: वैद्यक; इजाज़त:अनुमति।