दिल का निज़ाम रोज़ बदलता चला गया
हाथों से मेरे वक़्त फिसलता चला गया
तुम तो पिला के ख़ुम्र हुए ख़ुद से बेख़बर
वो: कौन था जो पी के संभलता चला गया
हमने गो बंदिशों से दिल को दूर ही रखा
लेकिन वो: शख़्स हाथ मसलता चला गया
उनसे नज़र मिली तो कहीं के नहीं रहे
दिल यूं गया गया कि मचलता चला गया
मुद्दत के बाद आईने से रू-ब-रू हुए
ग़म का ग़ुबार था कि निकलता चला गया
जिसकी तलाश थी मैं उसे पा नहीं सका
रिज़्वां ! मैं तेरे दिल में टहलता चला गया
मज़्लूम की आहों ने वो: तूफ़ां उठा दिया
दहशत से आस्मां भी दहलता चला गया !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: निज़ाम : शासन, व्यवस्था; ख़ुम्र: मदिरा ; बेख़बर : निश्चिंत ; गो : यद्यपि ; बंदिशों : प्रतिबंधों ; शख़्स : व्यक्ति ; मुद्दत : लंबा समय ; रू-ब-रू : सम्मुख ; ग़ुबार : धूल, मनोमालिन्य ; रिज़्वां : रिज़्वान, जन्नत/स्वर्ग के उद्यान का देख-रेख करने वाला ; मज़्लूम : अत्याचार-पीड़ित ; दहशत : भय, आतंक ; आस्मां: आकाश, परलोक, ईश्वर ।
हाथों से मेरे वक़्त फिसलता चला गया
तुम तो पिला के ख़ुम्र हुए ख़ुद से बेख़बर
वो: कौन था जो पी के संभलता चला गया
हमने गो बंदिशों से दिल को दूर ही रखा
लेकिन वो: शख़्स हाथ मसलता चला गया
उनसे नज़र मिली तो कहीं के नहीं रहे
दिल यूं गया गया कि मचलता चला गया
मुद्दत के बाद आईने से रू-ब-रू हुए
ग़म का ग़ुबार था कि निकलता चला गया
जिसकी तलाश थी मैं उसे पा नहीं सका
रिज़्वां ! मैं तेरे दिल में टहलता चला गया
मज़्लूम की आहों ने वो: तूफ़ां उठा दिया
दहशत से आस्मां भी दहलता चला गया !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: निज़ाम : शासन, व्यवस्था; ख़ुम्र: मदिरा ; बेख़बर : निश्चिंत ; गो : यद्यपि ; बंदिशों : प्रतिबंधों ; शख़्स : व्यक्ति ; मुद्दत : लंबा समय ; रू-ब-रू : सम्मुख ; ग़ुबार : धूल, मनोमालिन्य ; रिज़्वां : रिज़्वान, जन्नत/स्वर्ग के उद्यान का देख-रेख करने वाला ; मज़्लूम : अत्याचार-पीड़ित ; दहशत : भय, आतंक ; आस्मां: आकाश, परलोक, ईश्वर ।