दिल अगर बेख़बर नहीं होता
दर्द शामो-सहर नहीं होता
हुस्न तेरा अगर करामत है
हम पे क्यूं कर असर नहीं होता
जिस्म रहता जो रूह से मिल के
ये: गुनाहों का घर नहीं होता
पास आतीं न मंज़िलें मेरे
तू अगर हमसफ़र नहीं होता
जो न होती दुआ बुज़ुर्गों की
शे'र ज़ेरे-बहर नहीं होता
जल्वागर हैं नज़र में रख लीजे
मोजज़ा उम्र भर नहीं होता
दूर रहते अगर सियासतदां
ख़ाक दिल का शहर नहीं होता !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: करामत: चमत्कारी; ज़ेरे-बहर: छंद में; जल्वागर: प्रकट, दृश्यमान; मोजज़ा: चमत्कार; सियासतदां: राजनेता।
दर्द शामो-सहर नहीं होता
हुस्न तेरा अगर करामत है
हम पे क्यूं कर असर नहीं होता
जिस्म रहता जो रूह से मिल के
ये: गुनाहों का घर नहीं होता
पास आतीं न मंज़िलें मेरे
तू अगर हमसफ़र नहीं होता
जो न होती दुआ बुज़ुर्गों की
शे'र ज़ेरे-बहर नहीं होता
जल्वागर हैं नज़र में रख लीजे
मोजज़ा उम्र भर नहीं होता
दूर रहते अगर सियासतदां
ख़ाक दिल का शहर नहीं होता !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: करामत: चमत्कारी; ज़ेरे-बहर: छंद में; जल्वागर: प्रकट, दृश्यमान; मोजज़ा: चमत्कार; सियासतदां: राजनेता।