वक़्त की ना-कामयाबी देख ली
हर कहीं दिल की ख़राबी देख ली
तोड़ डाला पारसाई का गुमां
आईने ने बे-हिजाबी देख ली
पास आते ही पशेमां हो गए
चश्मे-जां की इल्तिहाबी देख ली
यूं हमें रुस्वा किया मंहगाई ने
शाह ने ख़ाली रकाबी देख ली
याद आती है किसी की रौशनी
तूर की रंगत गुलाबी देख ली
रात भर बारिश हुई इख़लास की
ख़ूने-दिल की इंसिबाबी देख ली
इक अज़ां पर सामने आ ही गए
आपकी भी इज़्तिराबी देख ली !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ना-कामयाबी: असफलता; ख़राबी: दुर्दशा; पारसाई: पवित्रता; गुमां: अभिमान, भ्रम; बे-हिजाबी: निरावरणता; पशेमां: लज्जित; चश्मे-जां: प्रिय की दृष्टि; इल्तिहाबी: आग उगलना, लपट; रुस्वा: अपमानित; रकाबी: छोटी थाली; रौशनी: प्रकाश; तूर: कोहे-तूर, मिस्र मिथकीय पर्वत, जहां हज़रत मूसा अ.स. ने ईश्वर के प्रकाश की एक झलक देखी थी; इख़लास: निश्छल, निःस्वार्थ प्रेम; ख़ूने-दिल: हृदय का रक्त; इंसिबाबी: रिसाव; इज़्तिराबी: व्याकुलता ।
हर कहीं दिल की ख़राबी देख ली
तोड़ डाला पारसाई का गुमां
आईने ने बे-हिजाबी देख ली
पास आते ही पशेमां हो गए
चश्मे-जां की इल्तिहाबी देख ली
यूं हमें रुस्वा किया मंहगाई ने
शाह ने ख़ाली रकाबी देख ली
याद आती है किसी की रौशनी
तूर की रंगत गुलाबी देख ली
रात भर बारिश हुई इख़लास की
ख़ूने-दिल की इंसिबाबी देख ली
इक अज़ां पर सामने आ ही गए
आपकी भी इज़्तिराबी देख ली !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ना-कामयाबी: असफलता; ख़राबी: दुर्दशा; पारसाई: पवित्रता; गुमां: अभिमान, भ्रम; बे-हिजाबी: निरावरणता; पशेमां: लज्जित; चश्मे-जां: प्रिय की दृष्टि; इल्तिहाबी: आग उगलना, लपट; रुस्वा: अपमानित; रकाबी: छोटी थाली; रौशनी: प्रकाश; तूर: कोहे-तूर, मिस्र मिथकीय पर्वत, जहां हज़रत मूसा अ.स. ने ईश्वर के प्रकाश की एक झलक देखी थी; इख़लास: निश्छल, निःस्वार्थ प्रेम; ख़ूने-दिल: हृदय का रक्त; इंसिबाबी: रिसाव; इज़्तिराबी: व्याकुलता ।