क्या कमी है शाह की तदबीर में
है मुक़य्यद हर ख़ुशी ज़ंजीर में
ढूंढिए, हम हैं कहां वो हैं कहां
मुल्क की इस बदनुमा ताबीर में
याद रखिए जंग में जाते हुए
दिल नहीं है सीनए-शमशीर में
कौन बे-पर्दा हुआ कब-किस जगह
क्या यही सब रह गया तहरीर में
मत उसे दीवानगी पर छेड़िए
गुमशुदा है आपकी तस्वीर में
क्यूं फ़रिश्ते दिन ब दिन आया करें
बात कुछ तो है मेरी तासीर में
ज़ीस्त से उम्मीद बाक़ी है अभी
हो असर शायद दुआए-पीर में !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तदबीर: प्रयास; मुक़य्यद : बंदी; ज़ंजीर : श्रृंखला; बदनुमा: अ-सुंदर, फूहड़, आदि; ताबीर: निर्माण; जंग : युद्ध; सीनए शमशीर : म्यान; बे-पर्दा : अनावृत; तहरीर : लेखन-शैली, हस्तलिपि; तस्वीर: चित्र; तासीर: प्रभाव; ज़ीस्त: जीवन; दुआए-पीर : गुरु की शुभेच्छा, आशीष।
है मुक़य्यद हर ख़ुशी ज़ंजीर में
ढूंढिए, हम हैं कहां वो हैं कहां
मुल्क की इस बदनुमा ताबीर में
याद रखिए जंग में जाते हुए
दिल नहीं है सीनए-शमशीर में
कौन बे-पर्दा हुआ कब-किस जगह
क्या यही सब रह गया तहरीर में
मत उसे दीवानगी पर छेड़िए
गुमशुदा है आपकी तस्वीर में
क्यूं फ़रिश्ते दिन ब दिन आया करें
बात कुछ तो है मेरी तासीर में
ज़ीस्त से उम्मीद बाक़ी है अभी
हो असर शायद दुआए-पीर में !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तदबीर: प्रयास; मुक़य्यद : बंदी; ज़ंजीर : श्रृंखला; बदनुमा: अ-सुंदर, फूहड़, आदि; ताबीर: निर्माण; जंग : युद्ध; सीनए शमशीर : म्यान; बे-पर्दा : अनावृत; तहरीर : लेखन-शैली, हस्तलिपि; तस्वीर: चित्र; तासीर: प्रभाव; ज़ीस्त: जीवन; दुआए-पीर : गुरु की शुभेच्छा, आशीष।