बुतों के साथ मरासिम बढ़ा रहे हैं हम
ख़ुदा के और भी नज़दीक आ रहे हैं हम
हर एक शक्ल में उसका ही अक्स दिखता है
ये: किस फ़रेब के धोके में आ रहे हैं हम
वो: ख़ुदपरस्त रहा हम ख़ुदापरस्त रहे
कई जनम से ये: रिश्ता निभा रहे हैं हम
अहल-ए-दिल, अहल-ए-वफ़ा, अहल-ए-मोहब्बत के लिए
ख़ुल्द में ख़ास सरंजाम ला रहे हैं हम
लो, हमने तोड़ दिया अपना हिजाब ऐ मूसा
बुलंदियों को बता दो के: आ रहे हैं हम।
(07 जन . 2013)
-सुरेश स्वप्निल
ख़ुदा के और भी नज़दीक आ रहे हैं हम
हर एक शक्ल में उसका ही अक्स दिखता है
ये: किस फ़रेब के धोके में आ रहे हैं हम
वो: ख़ुदपरस्त रहा हम ख़ुदापरस्त रहे
कई जनम से ये: रिश्ता निभा रहे हैं हम
अहल-ए-दिल, अहल-ए-वफ़ा, अहल-ए-मोहब्बत के लिए
ख़ुल्द में ख़ास सरंजाम ला रहे हैं हम
लो, हमने तोड़ दिया अपना हिजाब ऐ मूसा
बुलंदियों को बता दो के: आ रहे हैं हम।
(07 जन . 2013)
-सुरेश स्वप्निल