अर्श पर लिक्खा हुआ पैग़ाम पढ़
और उसमें दर्ज अपना नाम पढ़
बात ऐसी कह कि दिल पर जा लगे
मीर का दीवान सुब्हो-शाम पढ़
एह्तरामे - शैख़ मंहगा शौक़ है
रिंदे-नादां ! बोतलों के दाम पढ़
क़त्ले-नाहक़ वहशियत है कुफ़्र है
ऐ मुजाहिद ! ठीक से इस्लाम पढ़
क्या हुआ चंगेज़ो-हिटलर का बता
जाबिरे-तारीख़ का अंजाम पढ़
शर्म से गड़ जाएगी जम्हूरियत
ताजदारों के नए एहकाम पढ़
जी, कहा हमने 'अनलहक़' दें सज़ा
ऐ फ़रिश्ते ! ज़ोर से इल्ज़ाम पढ़ !'
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अर्श: आकाश, क्षितिज; पैग़ाम : संदेश; दर्ज : अंकित; मीर : हज़रत मीर तक़ी 'मीर', 19 वीं सदी के महान शायर; दीवान : रचना-संग्रह; एह्तरामे - शैख़ : मदिरा-विरोधी धर्म-भीरु का सम्मान; क़त्ले-नाहक़ : निरर्थक हत्या; वहशियत : उन्माद, पागलपन; कुफ़्र : ईश्वर-द्रोह; चंगेज़ो-हिटलर : चंगेज़ ख़ान, मंगोलिया का एक आततायी, आक्रमणकारी शासक और हिटलर, जर्मनी का नस्लवादी शासक; जाबिरे-तारीख़ : इतिहास-प्रसिद्ध अत्याचारी; अंजाम : परिणाम; जम्हूरियत : लोकतंत्र; ताजदारों : राष्ट्र-प्रमुखों ; एहकाम : आदेश; अनलहक़ : 'अहं ब्रह्मास्मि', इस्लाम के महान अद्वैतवादी दार्शनिक हज़रत मंसूर अ.स., का उद्घोष, जिन्हें उनके विचारों के कारण सूली पर चढ़ा दिया गया था; फ़रिश्ते : मृत्यु-दूत ; इल्ज़ाम : आरोप ।
और उसमें दर्ज अपना नाम पढ़
बात ऐसी कह कि दिल पर जा लगे
मीर का दीवान सुब्हो-शाम पढ़
एह्तरामे - शैख़ मंहगा शौक़ है
रिंदे-नादां ! बोतलों के दाम पढ़
क़त्ले-नाहक़ वहशियत है कुफ़्र है
ऐ मुजाहिद ! ठीक से इस्लाम पढ़
क्या हुआ चंगेज़ो-हिटलर का बता
जाबिरे-तारीख़ का अंजाम पढ़
शर्म से गड़ जाएगी जम्हूरियत
ताजदारों के नए एहकाम पढ़
जी, कहा हमने 'अनलहक़' दें सज़ा
ऐ फ़रिश्ते ! ज़ोर से इल्ज़ाम पढ़ !'
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अर्श: आकाश, क्षितिज; पैग़ाम : संदेश; दर्ज : अंकित; मीर : हज़रत मीर तक़ी 'मीर', 19 वीं सदी के महान शायर; दीवान : रचना-संग्रह; एह्तरामे - शैख़ : मदिरा-विरोधी धर्म-भीरु का सम्मान; क़त्ले-नाहक़ : निरर्थक हत्या; वहशियत : उन्माद, पागलपन; कुफ़्र : ईश्वर-द्रोह; चंगेज़ो-हिटलर : चंगेज़ ख़ान, मंगोलिया का एक आततायी, आक्रमणकारी शासक और हिटलर, जर्मनी का नस्लवादी शासक; जाबिरे-तारीख़ : इतिहास-प्रसिद्ध अत्याचारी; अंजाम : परिणाम; जम्हूरियत : लोकतंत्र; ताजदारों : राष्ट्र-प्रमुखों ; एहकाम : आदेश; अनलहक़ : 'अहं ब्रह्मास्मि', इस्लाम के महान अद्वैतवादी दार्शनिक हज़रत मंसूर अ.स., का उद्घोष, जिन्हें उनके विचारों के कारण सूली पर चढ़ा दिया गया था; फ़रिश्ते : मृत्यु-दूत ; इल्ज़ाम : आरोप ।