लीजिए, सर झुका लिया हमने
हसरतों को मिटा लिया हमने
चांद कासा लिए भटकता था
नूर दे कर जिला लिया हमने
ख़्वाब दर ख़्वाब का सफ़र करके
आपका अक्स पा लिया हमने
शोर सुनते हुए तरक़्क़ी का
जोश में घर जला लिया हमने
शाह किस बात से परेशां है
क्या ख़ज़ाना चुरा लिया हमने ?
आप नासेह, देर से आए
जाम से मुंह लगा लिया हमने
मल्कुले-मौत ख़ाक से ख़ुश है
और ईमां बचा लिया हमने !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हसरतों: इच्छाओं; कासा: भिक्षा-पात्र; नूर: प्रकाश; अक्स: प्रतिबिंब, रूप; तरक़्क़ी: विकास, प्रगति; नासेह: सीख देने वाला;
जाम: मदिरा-पात्र; मल्कुले-मौत: मृत्यु-दूत; ख़ाक: धूल, मिट्टी, मृत शरीर; ईमां: आस्था।
हसरतों को मिटा लिया हमने
चांद कासा लिए भटकता था
नूर दे कर जिला लिया हमने
ख़्वाब दर ख़्वाब का सफ़र करके
आपका अक्स पा लिया हमने
शोर सुनते हुए तरक़्क़ी का
जोश में घर जला लिया हमने
शाह किस बात से परेशां है
क्या ख़ज़ाना चुरा लिया हमने ?
आप नासेह, देर से आए
जाम से मुंह लगा लिया हमने
मल्कुले-मौत ख़ाक से ख़ुश है
और ईमां बचा लिया हमने !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हसरतों: इच्छाओं; कासा: भिक्षा-पात्र; नूर: प्रकाश; अक्स: प्रतिबिंब, रूप; तरक़्क़ी: विकास, प्रगति; नासेह: सीख देने वाला;
जाम: मदिरा-पात्र; मल्कुले-मौत: मृत्यु-दूत; ख़ाक: धूल, मिट्टी, मृत शरीर; ईमां: आस्था।