हम जियालों की क़द्र करते हैं
बा-कमालों की क़द्र करते हैं
दर्दमंदों पे जां लुटाते हैं
दिल के छालों की क़द्र करते हैं
जो उतरते हैं रूह से सीधे
उन ख़यालों की क़द्र करते हैं
आप खुल कर उठाइए हम पे
हम सवालों की क़द्र करते हैं
जो शबे -तार को उजाले दें
उन मशालों की क़द्र करते हैं
हम रईसों को दिल नहीं देते
ग़म के पालों की क़द्र करते हैं
हैं हमारे ख़ुदा जो ग़ुरबा के
आहो-नालों की क़द्र करते हैं!
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जियालों: बहादुरों; बा-कमालों: प्रतिभाशालियों; दर्दमंदों: संवेदनशीलों; शबे -तार: अंधेरी रात;
ग़ुरबा: निर्धनों; आहो-नालों: आर्त्तनाद।
बा-कमालों की क़द्र करते हैं
दर्दमंदों पे जां लुटाते हैं
दिल के छालों की क़द्र करते हैं
जो उतरते हैं रूह से सीधे
उन ख़यालों की क़द्र करते हैं
आप खुल कर उठाइए हम पे
हम सवालों की क़द्र करते हैं
जो शबे -तार को उजाले दें
उन मशालों की क़द्र करते हैं
हम रईसों को दिल नहीं देते
ग़म के पालों की क़द्र करते हैं
हैं हमारे ख़ुदा जो ग़ुरबा के
आहो-नालों की क़द्र करते हैं!
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जियालों: बहादुरों; बा-कमालों: प्रतिभाशालियों; दर्दमंदों: संवेदनशीलों; शबे -तार: अंधेरी रात;
ग़ुरबा: निर्धनों; आहो-नालों: आर्त्तनाद।