संग-ए-नज़र से आपके डरता नहीं हूं मैं
टूटूंगा न बिखरूंगा के: शीशा नहीं हूं मैं
शाने मिला के देख दिल की धड़कनों से पूछ
जैसा समझ रहा है तू वैसा नहीं हूं मैं
कहता हूं दिल की बात मुफ़लिसों के दरमियां
शाहों के आस-पास फटकता नहीं हूं मैं
जिन्स-ओ-मता नहीं हूं मैं इन्सां हूं हर्फ़-हर्फ़
बाज़ार में यहां-वहां बिकता नहीं हूं मैं
खाता हूं रिज़्क़ सिर्फ़ लहू की कमाई का
टुकड़ों पे किसी ग़ैर के ज़िंदा नहीं हूं मैं
बाग़ी हूं बदज़ुबान हूं शायर हूं पीर हूं
तू ख़ुद ही फ़ैसला कर क्या-क्या नहीं हूं मैं
हुब्ब-ए-ख़ुदा नसीब न हो कोई ग़म नहीं
इंसानियत की राह से भटका नहीं हूं मैं।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: संग-ए-नज़र: दृष्टि-पाषाण, दृष्टि रूपी पत्थर; शाने मिला के: आलिंगन-बद्ध हो कर, गले मिल कर;
मुफ़लिसों के दरमियां: अकिंचनों के मध्य; जिन्स-ओ-मता: वस्तु और सामान; हर्फ़-हर्फ़: अक्षरशः;
रिज़्क़: भोजन; बाग़ी: विद्रोही; बदज़ुबान: कटु-भाषी; पीर: ईश्वर और मनुष्य के मध्यस्थ;
हुब्ब-ए-ख़ुदा: ईश्वर का प्रेम/ सामीप्य; नसीब: प्राप्त।
टूटूंगा न बिखरूंगा के: शीशा नहीं हूं मैं
शाने मिला के देख दिल की धड़कनों से पूछ
जैसा समझ रहा है तू वैसा नहीं हूं मैं
कहता हूं दिल की बात मुफ़लिसों के दरमियां
शाहों के आस-पास फटकता नहीं हूं मैं
जिन्स-ओ-मता नहीं हूं मैं इन्सां हूं हर्फ़-हर्फ़
बाज़ार में यहां-वहां बिकता नहीं हूं मैं
खाता हूं रिज़्क़ सिर्फ़ लहू की कमाई का
टुकड़ों पे किसी ग़ैर के ज़िंदा नहीं हूं मैं
बाग़ी हूं बदज़ुबान हूं शायर हूं पीर हूं
तू ख़ुद ही फ़ैसला कर क्या-क्या नहीं हूं मैं
हुब्ब-ए-ख़ुदा नसीब न हो कोई ग़म नहीं
इंसानियत की राह से भटका नहीं हूं मैं।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: संग-ए-नज़र: दृष्टि-पाषाण, दृष्टि रूपी पत्थर; शाने मिला के: आलिंगन-बद्ध हो कर, गले मिल कर;
मुफ़लिसों के दरमियां: अकिंचनों के मध्य; जिन्स-ओ-मता: वस्तु और सामान; हर्फ़-हर्फ़: अक्षरशः;
रिज़्क़: भोजन; बाग़ी: विद्रोही; बदज़ुबान: कटु-भाषी; पीर: ईश्वर और मनुष्य के मध्यस्थ;
हुब्ब-ए-ख़ुदा: ईश्वर का प्रेम/ सामीप्य; नसीब: प्राप्त।