हज़ार हर्फ़ ग़रीबों पे लाए जाते हैं
क़ुसूर हो न हो लेकिन सताए जाते हैं
सियासतों के ज़ख़्म सूखते नहीं फिर भी
अवाम हैं कि उमीदें सजाए जाते हैं
जम्हूरियत के इदारों की बात मत कीजे
वहां उसूल के पुर्ज़े उड़ाए जाते हैं
रहे-सहर में अभी और भी मराहिल हैं
मगर चराग़ हैं कि दिल बुझाए जाते हैं
रक़ीब हैं तो करें जंग सामने आ कर
यहां-वहां से धमकियां दिलाए जाते हैं
ये मैकदा है यहां शैख़ की नहीं चलती
यहां शराब नहीं ग़म पिलाए जाते हैं
जिन्हें मुरीद बनाना नहीं हुआ मुमकिन
वो अब फ़साद में ज़िंदा जलाए जाते हैं !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हर्फ़ : कलंक; क़ुसूर : दोष ; सियासतों : राजनैतिक क्रिया-कलापों ; ज़ख़्म : घाव ; अवाम : जन-साधारण ; उमीदें : आशाएं ; जम्हूरियत : लोकतंत्र ; इदारों : संस्थाओं ; उसूल : सिद्धांतों ; पुर्ज़े : धज्जियां ; रहे-सहर : उषा का मार्ग ; मराहिल : विराम स्थल ; चराग़ : दीपक ; रक़ीब : शत्रु, प्रतिद्वंदी ; जंग : युद्ध ; मैकदा : मदिरालय ; शैख़ : धर्मोपदेशक ; मुरीद : भक्त ; मुमकिन : संभव ; फ़साद : उपद्रव, दंगा ।
क़ुसूर हो न हो लेकिन सताए जाते हैं
सियासतों के ज़ख़्म सूखते नहीं फिर भी
अवाम हैं कि उमीदें सजाए जाते हैं
जम्हूरियत के इदारों की बात मत कीजे
वहां उसूल के पुर्ज़े उड़ाए जाते हैं
रहे-सहर में अभी और भी मराहिल हैं
मगर चराग़ हैं कि दिल बुझाए जाते हैं
रक़ीब हैं तो करें जंग सामने आ कर
यहां-वहां से धमकियां दिलाए जाते हैं
ये मैकदा है यहां शैख़ की नहीं चलती
यहां शराब नहीं ग़म पिलाए जाते हैं
जिन्हें मुरीद बनाना नहीं हुआ मुमकिन
वो अब फ़साद में ज़िंदा जलाए जाते हैं !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हर्फ़ : कलंक; क़ुसूर : दोष ; सियासतों : राजनैतिक क्रिया-कलापों ; ज़ख़्म : घाव ; अवाम : जन-साधारण ; उमीदें : आशाएं ; जम्हूरियत : लोकतंत्र ; इदारों : संस्थाओं ; उसूल : सिद्धांतों ; पुर्ज़े : धज्जियां ; रहे-सहर : उषा का मार्ग ; मराहिल : विराम स्थल ; चराग़ : दीपक ; रक़ीब : शत्रु, प्रतिद्वंदी ; जंग : युद्ध ; मैकदा : मदिरालय ; शैख़ : धर्मोपदेशक ; मुरीद : भक्त ; मुमकिन : संभव ; फ़साद : उपद्रव, दंगा ।