तेरे दर आ लगे सर झुकाना पड़ा
बेख़ुदी में भी रिश्ता निभाना पड़ा
हमने मांगा न था दिल उसी ने दिया
ख़्वाह मख़्वाह एक अहसां उठाना पड़ा
हिज्र सहने की हममें कहां ताब थी
उसकी ज़िद थी हमें मुस्कुराना पड़ा
तेरी रुस्वाई क्या देखते बज़्म में
बुझ रही थी शम्'अ दिल जलाना पड़ा
पास था जब तलक रोज़ लुटता रहा
दर्द-ए-जां बन गया दिल मिटाना पड़ा
मैकदे से बहुत दूर रहते थे वो:
सुनके मेरी अज़ां आज आना पड़ा !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बेख़ुदी:आत्म-विस्मृति, नशा; ख़्वाह मख़्वाह: व्यर्थ में; हिज्र: वियोग; ताब: सामर्थ्य; रुस्वाई: अपमान;
बज़्म: गोष्ठी; दर्द-ए-जां: प्राणघातक पीड़ा; मैकदा: मदिरालय।
बेख़ुदी में भी रिश्ता निभाना पड़ा
हमने मांगा न था दिल उसी ने दिया
ख़्वाह मख़्वाह एक अहसां उठाना पड़ा
हिज्र सहने की हममें कहां ताब थी
उसकी ज़िद थी हमें मुस्कुराना पड़ा
तेरी रुस्वाई क्या देखते बज़्म में
बुझ रही थी शम्'अ दिल जलाना पड़ा
पास था जब तलक रोज़ लुटता रहा
दर्द-ए-जां बन गया दिल मिटाना पड़ा
मैकदे से बहुत दूर रहते थे वो:
सुनके मेरी अज़ां आज आना पड़ा !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बेख़ुदी:आत्म-विस्मृति, नशा; ख़्वाह मख़्वाह: व्यर्थ में; हिज्र: वियोग; ताब: सामर्थ्य; रुस्वाई: अपमान;
बज़्म: गोष्ठी; दर्द-ए-जां: प्राणघातक पीड़ा; मैकदा: मदिरालय।