न नींद आए न चैन आए
तो आशिक़ क्यूं हुआ जाए
लिया तक़दीर से लोहा
बहारें लूट कर लाए
हज़ारों बार दिल जीते
हज़ारों बार पछताए
ज़ुबां ख़ामोश रह लेगी
नज़र को कौन समझाए
कहां हम थे, कहां दुनिया
न आपस में निभा पाए
रहे रश्क़े-समंदर हम
हमीं कमज़र्फ़ कहलाए
चलो माना, ख़ुदा भी है
कभी तो शक्ल दिखलाए !
( 2015 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रश्क़े-समंदर: समुद्र की ईर्ष्या के पात्र; कमज़र्फ़: उथले।
तो आशिक़ क्यूं हुआ जाए
लिया तक़दीर से लोहा
बहारें लूट कर लाए
हज़ारों बार दिल जीते
हज़ारों बार पछताए
ज़ुबां ख़ामोश रह लेगी
नज़र को कौन समझाए
कहां हम थे, कहां दुनिया
न आपस में निभा पाए
रहे रश्क़े-समंदर हम
हमीं कमज़र्फ़ कहलाए
चलो माना, ख़ुदा भी है
कभी तो शक्ल दिखलाए !
( 2015 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रश्क़े-समंदर: समुद्र की ईर्ष्या के पात्र; कमज़र्फ़: उथले।