हक़ मांग मजूरा ! हिम्मत कर
ख़ुद्दार किसाना ! हिम्मत कर
हक़दार जवाना ! हिम्मत कर
जो ख़ामोशी से जीते हैं
हक़ उनका मारा जाता है
उनके ही ख़ून-पसीने से
हर क़स्र संवारा जाता है
उनके अश्कों से दुनिया का
हर रंग निखारा जाता है
उनके हक़ से सरमाए का
हर क़र्ज़ उतारा जाता है
हक़ मांग मजूरा ! ज़िद कर ले
बेज़ार किसाना ! ज़िद कर ले
दमदार जवाना ! ज़िद कर ले
उठ लाल फरारी ले कर चल
फिर ज़िम्मेदारी ले कर चल
सारी दुश्वारी ले कर चल
सर पर सरदारी ले कर चल
पूरी तैयारी ले कर चल
ज़ुल्मत की आंधी के आगे
सर और नहीं झुकने देना
यह सफ़र बग़ावत का, हक़ का
हरगिज़ न कहीं रुकने देना
दुनिया का रंग बदलना है
मंज़िल पा कर ही दम लेना
उठ, जाग मजूरा ! हिम्मत कर
मज़्लूम किसाना ! हिम्मत कर
नाकाम जवाना ! हिम्मत कर
हक़ मांग ! कि तेरी बारी है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
ख़ुद्दार किसाना ! हिम्मत कर
हक़दार जवाना ! हिम्मत कर
जो ख़ामोशी से जीते हैं
हक़ उनका मारा जाता है
उनके ही ख़ून-पसीने से
हर क़स्र संवारा जाता है
उनके अश्कों से दुनिया का
हर रंग निखारा जाता है
उनके हक़ से सरमाए का
हर क़र्ज़ उतारा जाता है
हक़ मांग मजूरा ! ज़िद कर ले
बेज़ार किसाना ! ज़िद कर ले
दमदार जवाना ! ज़िद कर ले
उठ लाल फरारी ले कर चल
फिर ज़िम्मेदारी ले कर चल
सारी दुश्वारी ले कर चल
सर पर सरदारी ले कर चल
पूरी तैयारी ले कर चल
ज़ुल्मत की आंधी के आगे
सर और नहीं झुकने देना
यह सफ़र बग़ावत का, हक़ का
हरगिज़ न कहीं रुकने देना
दुनिया का रंग बदलना है
मंज़िल पा कर ही दम लेना
उठ, जाग मजूरा ! हिम्मत कर
मज़्लूम किसाना ! हिम्मत कर
नाकाम जवाना ! हिम्मत कर
हक़ मांग ! कि तेरी बारी है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल