तन्हाई में घुट-घुट के जीते जाना आसान नहीं
पल-पल बढ़ती बेताबी से बच पाना आसान नहीं
आए हो तो बैठो भी दो-चार ग़ज़ल सुन के जाना
महफ़िल से आदाब बजा कर उठ जाना आसान नहीं
सुबह-दोपहर-शाम-रात-दिन हिज्र अगर बेचैन करे
टूटे दिल को तस्वीरों से बहलाना आसान नहीं
वो: तो तय कर के बैठे हैं हर इल्ज़ाम हमें देंगे
पर मुन्सिफ़ के आगे मुजरिम ठहराना आसान नहीं
आप भले ही मंहगाई पे लाख दलीलें दें लेकिन
भूखे इन्सां को बारीक़ी समझाना आसान नहीं
सुब्ह का भूला शाम तलक यूँ वापस तो आ जाता है
लेकिन सर को ऊंचा रख के घर आना आसान नहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आदाब बजा कर: औपचारिकता निभा कर; हिज्र : वियोग; इल्ज़ाम: आरोप; मुन्सिफ़: न्यायकर्त्ता;
मुजरिम: अपराधी; दलीलें: तर्क।
पल-पल बढ़ती बेताबी से बच पाना आसान नहीं
आए हो तो बैठो भी दो-चार ग़ज़ल सुन के जाना
महफ़िल से आदाब बजा कर उठ जाना आसान नहीं
सुबह-दोपहर-शाम-रात-दिन हिज्र अगर बेचैन करे
टूटे दिल को तस्वीरों से बहलाना आसान नहीं
वो: तो तय कर के बैठे हैं हर इल्ज़ाम हमें देंगे
पर मुन्सिफ़ के आगे मुजरिम ठहराना आसान नहीं
आप भले ही मंहगाई पे लाख दलीलें दें लेकिन
भूखे इन्सां को बारीक़ी समझाना आसान नहीं
सुब्ह का भूला शाम तलक यूँ वापस तो आ जाता है
लेकिन सर को ऊंचा रख के घर आना आसान नहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आदाब बजा कर: औपचारिकता निभा कर; हिज्र : वियोग; इल्ज़ाम: आरोप; मुन्सिफ़: न्यायकर्त्ता;
मुजरिम: अपराधी; दलीलें: तर्क।