हमने जिस-जिस पे नज़र डाली है
उसके दिल में जगह बना ली है
एक सरमाय:-ए- इश्क़ बाक़ी था
आज उस से भी जेब ख़ाली है
उस से उम्मीद क्या करें, यारों
मेरा मेहबूब ख़ुद सवाली है
जिसने अपनी ख़ुदी को तर्क किया
उसने मंज़िल हरेक पा ली है
मेरे मेहबूब का हुनर देखो
दुश्मनों से नज़र मिला ली है
जबसे उसने हमारा दिल तोड़ा
हमने अल्लः से लौ लगा ली है
वो: खड़े हैं मेरे दरीचे पे
ये: भरम है के: बे-ख़याली है?
(2010)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : सरमाय:-ए-इश्क़:प्रेम की पूँजी; ख़ुदी:अहंकार; तर्क:विलोपित; दरीचा: देहरी
उसके दिल में जगह बना ली है
एक सरमाय:-ए- इश्क़ बाक़ी था
आज उस से भी जेब ख़ाली है
उस से उम्मीद क्या करें, यारों
मेरा मेहबूब ख़ुद सवाली है
जिसने अपनी ख़ुदी को तर्क किया
उसने मंज़िल हरेक पा ली है
मेरे मेहबूब का हुनर देखो
दुश्मनों से नज़र मिला ली है
जबसे उसने हमारा दिल तोड़ा
हमने अल्लः से लौ लगा ली है
वो: खड़े हैं मेरे दरीचे पे
ये: भरम है के: बे-ख़याली है?
(2010)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : सरमाय:-ए-इश्क़:प्रेम की पूँजी; ख़ुदी:अहंकार; तर्क:विलोपित; दरीचा: देहरी