आज खिलते कँवल नज़र आए
कुछ मसाइल सहल नज़र आए
चश्मे-पुरनम पनाह दे न सके
ख़्वाब यूं बे-दख़ल नज़र आए
टूट जाएं अहद के पैमाने
हर अदा में ग़ज़ल नज़र आए
यूं न टूटे किसी ग़रीब का दिल
ज़िंदगी सर के बल नज़र आए
मुंतज़िर उम्र भर रहीं आंखें
आप वक़्ते-अज़ल नज़र आए
तुख़्म बो आए हैं दुआओं के
आसमां पर फ़सल नज़र आए
मिल चुका फ़ैसला गदाई का
रूह कासा बदल नज़र आए !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: कँवल: कमल; मसाइल: प्रश्न, समस्याएं; सहल: सरल, सुलझते हुए; चश्मे-पुरनम: भीगे नयन; पनाह: शरण;
बे-दख़ल: विस्थापित; अहद के पैमाने: संकल्पों के प्रतिमान; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; वक़्ते-अज़ल: मरते समय; तुख़्म: बीज;
गदाई: सन्यास, भिक्षुक-वृत्ति; कासा: भिक्षा-पात्र, यहां आशय शरीर।
कुछ मसाइल सहल नज़र आए
चश्मे-पुरनम पनाह दे न सके
ख़्वाब यूं बे-दख़ल नज़र आए
टूट जाएं अहद के पैमाने
हर अदा में ग़ज़ल नज़र आए
यूं न टूटे किसी ग़रीब का दिल
ज़िंदगी सर के बल नज़र आए
मुंतज़िर उम्र भर रहीं आंखें
आप वक़्ते-अज़ल नज़र आए
तुख़्म बो आए हैं दुआओं के
आसमां पर फ़सल नज़र आए
मिल चुका फ़ैसला गदाई का
रूह कासा बदल नज़र आए !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: कँवल: कमल; मसाइल: प्रश्न, समस्याएं; सहल: सरल, सुलझते हुए; चश्मे-पुरनम: भीगे नयन; पनाह: शरण;
बे-दख़ल: विस्थापित; अहद के पैमाने: संकल्पों के प्रतिमान; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; वक़्ते-अज़ल: मरते समय; तुख़्म: बीज;
गदाई: सन्यास, भिक्षुक-वृत्ति; कासा: भिक्षा-पात्र, यहां आशय शरीर।