हो एहतरामे-उम्र शराफ़त इसी में है
ढहते हुए मज़ार की इज़्ज़त इसी में है
हो वक़्ते-ज़रूरत तो मुंह न दिखाइए
नादान दोस्तों की नदामत इसी में है
हो निगहबां तेरा वही अव्वल वही आख़िर
दुनिया के दांव-पेच से राहत इसी में है
इज़्ज़त का रिज़्क़ हो न झुकानी पड़े नज़र
अल्लाह की इंसां पे इनायत इसी में है
हथियार हाथ में न उठा फ़तह के लिए
ऐ आशिक़े-हुसैन बग़ावत इसी में है !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहतरामे-उम्र: आयु का सम्मान; मज़ार: क़ब्र, यहां भावार्थ जर्जर शरीर; वक़्ते-ज़रूरत: आवश्यकता के समय; नदामत: विनम्रता, पश्चाताप; निगहबां: संरक्षक, ध्यान रखने वाला; अव्वल-आख़िर : आदि-अंत, ब्रह्म; रिज़्क़: आहार; इनायत: कृपा; फ़तह: विजय; नृशंस शासक यज़ीद के विरुद्ध अहिंसात्मक प्रतिरोध करने वाले, हज़रत इमाम हुसैन अ. स. के अनुयायी; बग़ावत: विद्रोह।
ढहते हुए मज़ार की इज़्ज़त इसी में है
हो वक़्ते-ज़रूरत तो मुंह न दिखाइए
नादान दोस्तों की नदामत इसी में है
हो निगहबां तेरा वही अव्वल वही आख़िर
दुनिया के दांव-पेच से राहत इसी में है
इज़्ज़त का रिज़्क़ हो न झुकानी पड़े नज़र
अल्लाह की इंसां पे इनायत इसी में है
हथियार हाथ में न उठा फ़तह के लिए
ऐ आशिक़े-हुसैन बग़ावत इसी में है !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहतरामे-उम्र: आयु का सम्मान; मज़ार: क़ब्र, यहां भावार्थ जर्जर शरीर; वक़्ते-ज़रूरत: आवश्यकता के समय; नदामत: विनम्रता, पश्चाताप; निगहबां: संरक्षक, ध्यान रखने वाला; अव्वल-आख़िर : आदि-अंत, ब्रह्म; रिज़्क़: आहार; इनायत: कृपा; फ़तह: विजय; नृशंस शासक यज़ीद के विरुद्ध अहिंसात्मक प्रतिरोध करने वाले, हज़रत इमाम हुसैन अ. स. के अनुयायी; बग़ावत: विद्रोह।