हवाओं में नमी कम हो गई है
चमन की आह मातम हो गई है
सियासत ने समेटे दोस्ताने
मिरी तन्हाई हमदम हो गई है
सफ़र की इब्तिदा ही अब हुई है
अभी से सांस मद्धम हो गई है
हक़ीक़त का छिड़ा है ज़िक्र जबसे
ये: गर्दन किसलिए ख़म हो गई है
अवामे-हिंद के हालात सुन कर
नज़र अल्लाह की नम हो गई है
उठी जो ना'र:-ए-तक्बीर बन कर
वो: मुट्ठी आज परचम हो गई है
मिरे मोहसिन मिरे दर पर खड़े हैं
नज़र ख़ुद ख़ैर-मक़दम हो गई है !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मातम: शोक-गीत; दोस्ताने: मित्रताएं; तन्हाई: एकांत; हमदम: साथी; सफ़र की इब्तिदा:यात्रा का समारंभ;
मद्धम: मध्यम, धीमी; हक़ीक़त: वास्तविकता; ज़िक्र: उल्लेख; ख़म: झुकी हुई; अवामे-हिंद: भारत की जनता;
ना'र:-ए-तक्बीर: ईश्वर की सर्वोच्चता का नाद, 'अल्लाह-ओ-अकबर'; परचम: ध्वज; मोहसिन: कृपालु; दर: द्वार; ख़ैर-मक़दम: स्वागत ।
चमन की आह मातम हो गई है
सियासत ने समेटे दोस्ताने
मिरी तन्हाई हमदम हो गई है
सफ़र की इब्तिदा ही अब हुई है
अभी से सांस मद्धम हो गई है
हक़ीक़त का छिड़ा है ज़िक्र जबसे
ये: गर्दन किसलिए ख़म हो गई है
अवामे-हिंद के हालात सुन कर
नज़र अल्लाह की नम हो गई है
उठी जो ना'र:-ए-तक्बीर बन कर
वो: मुट्ठी आज परचम हो गई है
मिरे मोहसिन मिरे दर पर खड़े हैं
नज़र ख़ुद ख़ैर-मक़दम हो गई है !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मातम: शोक-गीत; दोस्ताने: मित्रताएं; तन्हाई: एकांत; हमदम: साथी; सफ़र की इब्तिदा:यात्रा का समारंभ;
मद्धम: मध्यम, धीमी; हक़ीक़त: वास्तविकता; ज़िक्र: उल्लेख; ख़म: झुकी हुई; अवामे-हिंद: भारत की जनता;
ना'र:-ए-तक्बीर: ईश्वर की सर्वोच्चता का नाद, 'अल्लाह-ओ-अकबर'; परचम: ध्वज; मोहसिन: कृपालु; दर: द्वार; ख़ैर-मक़दम: स्वागत ।