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सोमवार, 18 अप्रैल 2016

होश क़ायम रहे ...

दांव  उल्टा  पड़ा  हसीनों  का
दम  न  निकला  तमाशबीनों  का

इश्क़  दो  रोज़  में  नहीं  मिलता
सब्र  भी  चाहिए  महीनों  का

सांप  निकले  हैं  घर  बसाने  को
देखते  नाप  आस्तीनों  का

वक़्त  के  हाथ  पड़  गए  जिस  दिन
रंग  उड़  जाएगा  नगीनों  का

गिर  रहा  है  जम्हूर  का  रुतबा
होश  क़ायम  रहे   ज़हीनों  का


ज़ार  को  खींच  लाए  घुटनों  पर
ख़ूब  है  हौसला  कमीनों  का

ज़ीस्त  क्या  है  सराय  फ़ानी  है
दर्द  समझे  ख़ुदा  मकीनों  का  !

                                                                          (2016)

                                                                    -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ : हसीनों : सुंदर व्यक्तियों ; दम : प्राण ; तमाशबीनों : कौतुक देखने वालों ; सब्र : धैर्य ; नगीनों : रत्नों ; जम्हूर : लोकतंत्र ; रुतबा : स्थान, प्रतिष्ठा ; होश : चेतना, विवेक ; क़ायम : स्थिर, शास्वत ; जहीनों : बुद्धिमानों, विद्वानों ; ज़ार : इतिहास प्रसिद्ध अत्याचारी शासक ; हौसला : उत्साह ; कमीनों : लघु श्रमिक, कार्मिक ; ज़ीस्त : जीवन ; सराय : धर्मशाला, प्रवास-स्थान ; फ़ानी : विनाश्य ; मकीनों :प्रवासियों ।

मेहमां-ए-चंद रोज़

जीना  पड़ा  तो  दर्द  जबीं  पर  उभर  गए
ख़ुद्दार  ख़्वाब  टूट  ज़मीं  पर  बिखर  गए

मुश्किल  में  है  ज़मीर  तो  ईमान  दांव  पर
कुछ  बेहया  दरख़्त  जड़ों  से  उखड़  गए

मस्जिद  में  हो  पनाह  न  मंदिर  में  आसरा
किसका  क़ुसूर  है  कि  परिंदे  उजड़  गए

ग़म  इस  तरह  मिले  कि  दिलो-जान  हो  गए
मेहमां-ए-चंद  रोज़  अज़ल  तक   ठहर  गए

दिल   को   है  जिनकी  फ़िक्र  वही  बेनियाज़  हैं
कैसे  कहें  कि  ख़्वाब  हमारे  संवर  गए

देहक़ां  के  हाल-चाल  से  दिल्ली  है  बे-ख़बर
सीने  में  दिल  नहीं  है  कि  एहसास  मर  गए

जब-जब  किसी  ग़रीब  के  दिल  से  उठी  है  आह
वो  ज़लज़ले  हुए  कि  ज़माने  सिहर  गए  !

                                                                                             (2016)

                                                                                       -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: जबीं : ललाट ; ख़ुद्दार ख़्वाब: स्वाभिमानी स्वप्न ; ज़मीं :धरा ; ज़मीर : विवेक ; ईमान : आस्था ; बेहया : निर्लज्ज ; दरख़्त : वृक्ष ; पनाह : शरण ; आसरा : आश्रय ; क़ुसूर :दोष; परिंदे : पक्षी गण ; दिलो-जान : हृदय और प्राण ; मेहमां-ए-चंद रोज़ : कुछ दिन के अतिथि ;  अज़ल : मृत्यु ; बेनियाज़ : निश्चिंत ; देहक़ां : कृषक गण ; ज़लज़ले : भूकंप ।