दांव उल्टा पड़ा हसीनों का
दम न निकला तमाशबीनों का
इश्क़ दो रोज़ में नहीं मिलता
सब्र भी चाहिए महीनों का
सांप निकले हैं घर बसाने को
देखते नाप आस्तीनों का
वक़्त के हाथ पड़ गए जिस दिन
रंग उड़ जाएगा नगीनों का
गिर रहा है जम्हूर का रुतबा
होश क़ायम रहे ज़हीनों का
ज़ार को खींच लाए घुटनों पर
ख़ूब है हौसला कमीनों का
ज़ीस्त क्या है सराय फ़ानी है
दर्द समझे ख़ुदा मकीनों का !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : हसीनों : सुंदर व्यक्तियों ; दम : प्राण ; तमाशबीनों : कौतुक देखने वालों ; सब्र : धैर्य ; नगीनों : रत्नों ; जम्हूर : लोकतंत्र ; रुतबा : स्थान, प्रतिष्ठा ; होश : चेतना, विवेक ; क़ायम : स्थिर, शास्वत ; जहीनों : बुद्धिमानों, विद्वानों ; ज़ार : इतिहास प्रसिद्ध अत्याचारी शासक ; हौसला : उत्साह ; कमीनों : लघु श्रमिक, कार्मिक ; ज़ीस्त : जीवन ; सराय : धर्मशाला, प्रवास-स्थान ; फ़ानी : विनाश्य ; मकीनों :प्रवासियों ।
दम न निकला तमाशबीनों का
इश्क़ दो रोज़ में नहीं मिलता
सब्र भी चाहिए महीनों का
सांप निकले हैं घर बसाने को
देखते नाप आस्तीनों का
वक़्त के हाथ पड़ गए जिस दिन
रंग उड़ जाएगा नगीनों का
गिर रहा है जम्हूर का रुतबा
होश क़ायम रहे ज़हीनों का
ज़ार को खींच लाए घुटनों पर
ख़ूब है हौसला कमीनों का
ज़ीस्त क्या है सराय फ़ानी है
दर्द समझे ख़ुदा मकीनों का !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : हसीनों : सुंदर व्यक्तियों ; दम : प्राण ; तमाशबीनों : कौतुक देखने वालों ; सब्र : धैर्य ; नगीनों : रत्नों ; जम्हूर : लोकतंत्र ; रुतबा : स्थान, प्रतिष्ठा ; होश : चेतना, विवेक ; क़ायम : स्थिर, शास्वत ; जहीनों : बुद्धिमानों, विद्वानों ; ज़ार : इतिहास प्रसिद्ध अत्याचारी शासक ; हौसला : उत्साह ; कमीनों : लघु श्रमिक, कार्मिक ; ज़ीस्त : जीवन ; सराय : धर्मशाला, प्रवास-स्थान ; फ़ानी : विनाश्य ; मकीनों :प्रवासियों ।